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भारत में ब्याज दर पर फैसला महंगाई का रुझान देखकर, अमेरिकी ब्याज दर को देखकर नहीं- RBI MPC सदस्य


देश का केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बेलगाम महंगाई पर नियंत्रण करने के लिए  पिछले साल मई से लेकर इस साल फरवरी तक ब्याज दर मं कुल 250 बेसिस प्वाइंट यानी 2.50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर चुका है। हालांकि, पिछले दो बार से ब्याज दर को जस का तस रखा जा रहा है। आरबीआई के ब्याज दर में बढ़ोतरी पर कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिकी में ब्याज दर में बढ़ोतरी को देखकर भारत में भी ऐसा किया जा रहा है। लेकिन, ब्याज दर पर फैसला लेने वाली RBI MPC के कुछ सदस्यों का मानना है कि भारत ब्याज दर में बढ़ोतरी का फैसला घरेलू महंगाई के रुझान को देखकर लिया जाएगा, ना कि अमेरिकी ब्याज दर के रुझान को देखकर। RBI MPC की जून बैठक के जारी मिनट्स (कार्यवृत)  में इसकी जानकारी दी गई है। आप भी मिनट्स को हुबहू पढ़ सकते हैं- 

मौद्रिक नीति समिति की 6 से 8 जून 2023 के दौरान हुई बैठक का कार्यवृत्त[भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45ज़ेडएल के अंतर्गत]

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45जेडबी के अंतर्गत गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तैंतालीसवीं बैठक 6 से 8 जून 2023 के दौरान आयोजित की गई थी।

2. बैठक में सभी सदस्य – डॉ. शशांक भिड़े, माननीय वरिष्ठ सलाहकार, नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, दिल्ली; डॉ. आशिमा गोयल, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च, मुंबई; प्रो. जयंत आर. वर्मा, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद; डॉ. राजीव रंजन, कार्यपालक निदेशक (भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडबी (2) (सी) के अंतर्गत केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित रिज़र्व बैंक के अधिकारी); डॉ. माइकल देवब्रत पात्र, मौद्रिक नीति के प्रभारी उप गवर्नर उपस्थित रहें और इसकी अध्यक्षता श्री शक्तिकांत दास, गवर्नर द्वारा की गई।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ज़ेडएल के अनुसार, रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक के चौदहवें दिन इस बैठक की कार्यवाहियों का कार्यवृत्त प्रकाशित करेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होगा:

(क) मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अपनाया गया संकल्प;

(ख) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर मौद्रिक नीति के प्रत्येक सदस्य को प्रदान किया गया वोट; और

(ग) उक्त बैठक में अपनाए गए संकल्प पर धारा 45ज़ेडआई की उप-धारा (11) के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति के प्रत्येक सदस्य का वक्तव्य।

4. एमपीसी ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उपभोक्ता विश्वास, परिवारों की मुद्रास्फीति प्रत्याशा, कॉर्पोरेट क्षेत्र के प्रदर्शन, ऋण की स्थिति, औद्योगिक, सेवाओं और आधारभूत संरचना क्षेत्रों के लिए संभावनाएं और पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के अनुमानों का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षणों की समीक्षा की। एमपीसी ने इन संभावनाओं के विभिन्न जोखिमों के इर्द-गिर्द स्टाफ के समष्टि आर्थिक अनुमानों और वैकल्पिक परिदृश्यों की विस्तृत रूप से भी समीक्षा की। उपर्युक्त पर और मौद्रिक नीति के रुख पर व्यापक चर्चा करने के बाद एमपीसी ने संकल्प अपनाया जिसे नीचे प्रस्तुत किया गया है।

संकल्प

5. वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (8 जून 2023) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।

स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनी हुई है।

  • एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

ये निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य प्राप्त करने के अनुरूप है।

इस निर्णय में अंतर्निहित मुख्य विचार नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त किए गए हैं।

आकलन

वैश्विक अर्थव्यवस्था

6. 2023 की दूसरी तिमाही में, मुद्रास्फीति में कमी लेकिन फिर भी बढ़ी हुई, सख्त वित्तीय स्थिति, बैंकिंग क्षेत्र में तनाव, और दीर्घकालिक भू-राजनीतिक संघर्षों के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था पिछली तिमाही में प्राप्त गति को बनाए रख रही है। मौद्रिक नीति के सख्त चक्र के आसन्न बढ़ोत्तरी की प्रत्याशाओं पर सॉवरेन बॉन्ड प्रतिफल एक तरफ से (साइडवेज) कारोबार कर रही है, जबकि अमेरिकी डॉलर की मूल्यवृद्धि हुई है। एमपीसी की पिछली बैठक के बाद से इक्विटी बाजार सीमित दायरे में बने हुए हैं। कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के लिए कमजोर बाहरी मांग, उच्च ऋण स्तर और सख्त बाहरी वित्तीय स्थितियों के बीच भू-आर्थिक विघटन, संवृद्धि की संभावनाओं के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं, हालांकि नवीन जोखिम वहन क्षमता पर पूंजी प्रवाह सावधानीपूर्वक उनके पास लौट रहे हैं।

घरेलू अर्थव्यवस्था

7. 31 मई 2023 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी अनंतिम अनुमानों के अनुसार, भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) संवृद्धि 2022-23 की तीसरी तिमाही में 4.5 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष, वाई-ओ-वाई) से बढ़कर चौथी तिमाही में 6.1 प्रतिशत हो गई, जोकि नियत निवेश और उच्च निवल निर्यात द्वारा समर्थित है। 2022-23 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.2 प्रतिशत रही, जो 7.0 प्रतिशत के दूसरे अग्रिम अनुमान से अधिक है।

8. जैसा कि उच्च आवृत्ति संकेतकों में परिलक्षित होता है, 2023-24 की पहली तिमाही में घरेलू आर्थिक गतिविधि आघात-सहनीय बनी हुई है। विनिर्माण और सेवाओं के लिए क्रय प्रबंधकों के सूचकांक (पीएमआई) ने निरंतर विस्तार का संकेत दिया, साथ ही, मई में विनिर्माण पीएमआई 31 महीने के उच्च स्तर पर और सेवा पीएमआई अप्रैल-मई में 13- वर्ष के उच्च स्तर पर रहा। सेवा क्षेत्र में, घरेलू हवाई यात्री यातायात, ई-वे बिल, टोल संग्रह और डीजल की खपत में अप्रैल-मई में उछाल देखा गया, जबकि रेलवे माल भाड़ा और बंदरगाह यातायात में मामूली संवृद्धि दर्ज की गई।

9. जैसा कि यात्री वाहनों की बिक्री और घरेलू हवाई यात्री यातायात जैसे संकेतकों में परिलक्षित होता है, मांग पक्ष पर शहरी खर्च मजबूत बना हुआ है, जिसमें अप्रैल में दोहरे अंकों की संवृद्धि दर्ज की गई। ग्रामीण मांग में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, हालांकि असमान रूप से - अप्रैल में मोटरसाइकिल की बिक्री बढ़ी, जबकि बेमौसम बारिश के कारण ट्रैक्टर की बिक्री में आंशिक कमी आई। अप्रैल में इस्पात की खपत और सीमेंट उत्पादन में बेहतर विस्तार से परिलक्षित निवेश गतिविधि बढ़ रही है। पण्य निर्यात और तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात में अप्रैल में कमी देखी गई, जबकि सेवा निर्यात में एक मजबूत विस्तार बरकरार रहा।

10. बृहद अनुकूल आधार प्रभावों के कारण सीपीआई मुद्रास्फीति, फरवरी में 6.4 प्रतिशत से तेजी से गिरकर अप्रैल 2023 में 4.7 प्रतिशत हो गई, जिसमें सभी तीन प्रमुख समूहों में नरमी देखी गई थी। अनाज, अंडे, दूध, फल, मांस और मछली, मसालों और तैयार खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी और खाद्य तेलों में अपस्फीति के गहन होने से खाद्य समूह मुद्रास्फीति में कमी आई। ईंधन समूह में, एलपीजी तथा जलाऊ लकड़ी में मुद्रास्फीति और चिप्स की कीमतों में गिरावट आई तथा मिट्टी के तेल की कीमतें अवस्फीति में चली गईं। मूल मुद्रास्फीति (अर्थात्, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति) कम हो गई, जोकि कपड़े और जूते, घरेलू सामान और सेवाएं, स्वास्थ्य, परिवहन और संचार, व्यक्तिगत देखभाल और प्रभाव तथा मनोरंजन और मनोरंजन के उप-समूहों द्वारा संचालित है।

11. एलएएफ के अंतर्गत औसत दैनिक अवशोषण, फरवरी-मार्च में 1.4 लाख करोड़ से बढ़कर अप्रैल-मई के दौरान 1.7 लाख करोड़ हो गया। 19 मई 2023 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10.1 प्रतिशत और खाद्य से इतर बैंक ऋण में 15.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2 जून 2023 को भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 595.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।

संभावना

12. आगे चलकर, हेडलाइन मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र को खाद्य मूल्य गतिकी द्वारा आकार दिए जाने की संभावना है। मंडी में बेहतर आवक और खरीद से गेहूं की कीमतों में कुछ सुधार देखने को मिल सकता है। दूसरी ओर, आपूर्ति में कमी और उच्च चारा लागत के कारण दूध की कीमतों पर दबाव बने रहने की संभावना है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून का पूर्वानुमान खरीफ फसलों के लिए शुभ संकेत देता है; तथापि, कृषि उत्पादन की संभावनाओं का आकलन करने के लिए मानसून के स्थानिक और अस्थायी वितरण की बारीकी से निगरानी करने की आवश्यकता होगी। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है लेकिन संभावना अनिश्चित बना हुआ है। रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षणों के शुरुआती परिणामों के अनुसार, विनिर्माण, सेवाओं और अवसंरचना फर्मों ने इनपुट लागत और आउटपुट कीमतों के सख्त होने की उम्मीद की। अंतिम सर्वेक्षण के परिणाम आने पर एक स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए और एक सामान्य मानसून अनुमान करते हुए, सीपीआई मुद्रास्फीति 2023-24 के लिए 5.1 प्रतिशत अनुमानित है, जिसका कि पहली तिमाही में 4.6 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत रहने की संभावना है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं (चार्ट 1)।

13. 2022-23 में उच्च रबी फसल उत्पादन, अपेक्षित सामान्य मानसून, और सेवाओं में निरंतर उछाल से चालू वर्ष में निजी खपत और समग्र आर्थिक गतिविधि को समर्थन मिलना चाहिए। पूंजीगत व्यय पर सरकार के जोर, पण्य की कीमतों में नरमी और मजबूत ऋण वृद्धि से निवेश गतिविधियों में बेहतरी आने की उम्मीद है। हालांकि, कमजोर बाहरी मांग, भू-आर्थिक विखंडन, और दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तनाव, संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि 6.5 प्रतिशत अनुमानित है, जिसका कि पहली तिमाही में 8.0 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.0 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, साथ ही, जोखिम समान रूप से संतुलित है (चार्ट 2)।

Chart 1 and 2

14. एमपीसी ने मार्च-अप्रैल में सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति में आई नरमी को संज्ञान में लिया है, जो अनुमानों के अनुरूप सहन-सीमा बैंड में आ गई है, तथा यह मौद्रिक सख्ती और आपूर्ति बढ़ाने के उपायों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाता है। हेडलाइन मुद्रास्फीति के 2022-23 के स्तर से 2023-24 में कम होने का अनुमान है, लेकिन यह अभी भी लक्ष्य से ऊपर रहेगी, जिसके लिए निरंतर सतर्क रहने की आवश्यकता है। इस संबंध में दक्षिण पश्चिम मानसून की प्रगति महत्वपूर्ण है। घरेलू आर्थिक गतिविधियां बेहतर बनी हुई हैं। उपभोक्ता विश्वास में सुधार हो रहा है और व्यवसाय भविष्य को लेकर आशावादी बने हुए हैं। एमपीसी द्वारा की गई 250 आधार अंकों की संचयी दर वृद्धि अर्थव्यवस्था में प्रसारित हो रही है और इसके पूर्ण प्रभाव से आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति के दबावों को नियंत्रित रहना चाहिए। लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति के संरेखण के लिए मौद्रिक नीति को सावधानीपूर्वक कैलिब्रेट करने की आवश्यकता होगी। इस पृष्ठभूमि पर, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया। एमपीसी ने उभरती हुई मुद्रास्फीति और संवृद्धि की संभावना पर कड़ी निगरानी जारी रखने का संकल्प लिया। मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को पुख्ता ढंग से नियंत्रित रखने और मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक कम करने के लिए यह त्वरित और उचित रूप से आवश्यक मौद्रिक कार्रवाई करेगा। एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

15. एमपीसी के सभी सदस्य - डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के लिए वोट किया।

16. डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने संकल्प के इस हिस्से पर आपत्ति जताई।

17. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 22 जून 2023 को प्रकाशित किया जाएगा।

18. एमपीसी की अगली बैठक 8-10 अगस्त 2023 के दौरान निर्धारित है।

पॉलिसी रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर रखने के संकल्प पर मतदान

सदस्यमत
डॉ. शशांक भिड़ेहाँ
डॉ. आशिमा गोयलहाँ
प्रो. जयंत आर. वर्माहाँ
डॉ. राजीव रंजनहाँ
डॉ. माइकल देवब्रत पात्रहाँ
श्री शक्तिकान्त दासहाँ

डॉ. शशांक भिड़े का वक्तव्य

19. एमपीसी की अप्रैल बैठक के बाद से, वित्त वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी संवृद्धि संख्या अद्यतन की गई है और हमारे पास अप्रैल 2023 के लिए हेडलाइन मुद्रास्फीति संख्या भी है। स्थिर मूल्यों पर जीडीपी के लिए आधिकारिक अनंतिम अनुमान (पीई), वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि को 7.2 प्रतिशत से अधिक रखता है, जो दूसरे अग्रिम अनुमान में 7 प्रतिशत था। अप्रैल में वर्ष-दर-वर्ष हेडलाइन मुद्रास्फीति दर गिरकर 4.7 प्रतिशत हो गई, जो मार्च की दर 5.7 प्रतिशत से काफी कम है। वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी में सुधार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा एसएई में 7 प्रतिशत की समग्र संवृद्धि दर से निहित 5.1 प्रतिशत की संवृद्धि की प्रत्याशा की तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में 6.1 प्रतिशत की संवृद्धि के कारण था। मार्च-अप्रैल के लिए कम मुद्रास्फीति रीडिंग के साथ चौथी तिमाही में अनुमान से बेहतर संवृद्धि, संवृद्धि और मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले कारकों के विभिन्न समूहों को दर्शाती है।

20. वैश्विक समष्टि आर्थिक स्थितियाँ प्रतिकूल बनी हुई हैं, जो धीमी संवृद्धि गति और सभी अर्थव्यवस्थाओं में कम होते लेकिन बढ़े हुए मुद्रास्फीति के दबाव को दर्शाती हैं। इसके अलावा, आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रतिबंधित करने वाली नीतियों के कारण वैश्विक व्यापार के अवसर सीमित हो गए हैं। हाल की घटनाओं ने मौद्रिक और राजकोषीय नीति रुख के प्रति बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों की असुरक्षतिता की ओर भी इशारा किया है। वैश्विक आर्थिक मंदी और दीर्घकालिक यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा बाजारों में अनिश्चितता रही। प्रमुख उन्नत और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति के दबाव को रोकने के उद्देश्य से किए गए मौद्रिक नीतिगत उपाय मुद्रास्फीति दर को नियंत्रित करने में सफल प्रतीत होते हैं, तथापि, दरें नीतिगत लक्ष्यों से काफी ऊपर बनी हुई हैं।

21. यह अल्प से मध्यम अवधि में संवृद्धि और मुद्रास्फीति के संभावित पथ के आकलन के लिए एक समग्र संदर्भ प्रदान करता है। वर्ष 2022-23 और 2021-22 में भी जीडीपी संवृद्धि की एक महत्वपूर्ण विशेषता अन्य तिमाहियों की तुलना में पहली तिमाही की प्रभाविता थी। चूंकि 2020-21 की पहली तिमाही में महामारी के कारण जीडीपी में आई तेज गिरावट का प्रतितुलन बाद की संवृद्धि से हो गया, 2023-24 की पहली तिमाही में संवृद्धि सभी तिमाहियों में हुई संवृद्धि के करीब होने की संभावना है। 2022-23 में संवृद्धि के निष्पादन की दूसरी विशेषता, सभी क्षेत्रों में असमान निष्पादन है। योजित सकल मूल्य (जीवीए) की संवृद्धि में दर्शाई गई विनिर्माण संवृद्धि को निर्माण (10.0 प्रतिशत) या सेवा क्षेत्र (9.5 प्रतिशत) की संवृद्धि की तुलना में 1.3 प्रतिशत पर रखा गया है। जबकि 2022-23 में निविष्टि लागत के दबाव का अन्य क्षेत्रों की तुलना में विनिर्माण क्षेत्र पर अधिक प्रभाव पड़ा है, उपभोग व्यय और निवेश की धीमी संवृद्धि ने भी अन्य क्षेत्रों की तुलना में विनिर्माण की मांग को अधिक प्रभावित किया होगा। अंततः, निर्यात मांग में गिरावट का असर विनिर्माण उत्पादन पर पड़ेगा। आगे, लागत दबाव और समग्र मुद्रास्फीति में कमी और निर्यात की बहाली, विनिर्माण संवृद्धि में तेजी लाने में महत्वपूर्ण होगी। 2022-23 की चौथी तिमाही में सूचीबद्ध विनिर्माण कंपनियों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संकलित संकेतक जीवीए संवृद्धि में वृद्धि के साथ लाभ मार्जिन में महत्वपूर्ण सुधार का संकेत देते हैं और वर्ष के दौरान क्षमता उपयोग में निरंतर सुधार 2023-24 में विनिर्माण संवृद्धि की बहाली के लिए सकारात्मक है। तथापि, विनिर्माण क्षेत्र में ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ कमजोर निर्यात वातावरण चिंता का विषय होगा।

22. सेवा क्षेत्र 2022-23 में अर्थव्यवस्था के लिए संवृद्धि का चालक था। महामारी के दौरान बुरी तरह प्रभावित सेवा क्षेत्रों में मांग की बहाली ने समग्र क्षेत्र की संवृद्धि को बनाए रखा है। 2022-23 में उप-क्षेत्र व्यापार, होटल, परिवहन और प्रसारण में जीवीए संवृद्धि अभी भी 2019-20 में अपने महामारी-पूर्व स्तर से केवल 4.1 प्रतिशत अधिक है, इन उप-क्षेत्र में संवृद्धि की काफी संभावनाएं हैं। 2023-24 में वैश्विक आर्थिक मंदी से सेवाओं के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।

23. कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के मामले में, 2022-23 में जीवीए संवृद्धि 2021-22 से अधिक रही, तथापि वर्ष के दौरान मौसम का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अल नीनो घटना उद्भव के बावजूद, भारतीय मौसम विभाग द्वारा सामान्य मानसून का पूर्वानुमान कृषि संवृद्धि के लिए सहायक होगा।

24. अर्थव्यवस्था के मांग पक्ष पर, परिवारों और उद्यमों के हालिया भारतीय रिज़र्व बैंक के नमूना सर्वेक्षण, 2023-24 के लिए उपभोक्ता रुख और व्यापार संभावना में सुधार का संकेत देते हैं। तथापि, 2022-23 के दौरान कमजोर रुख की तुलना में सुधार है। उद्यम सर्वेक्षण के शुरुआती परिणाम विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में मांग की स्थिति पर सेवाओं और बुनियादी ढांचा कंपनियों की ओर से अधिक आशावाद का संकेत देते हैं। मई में आयोजित शहरी परिवारों का उपभोक्ता विश्वास सर्वेक्षण, वर्तमान अवधि के लिए विश्वास में लगातार सुधार और 'एक वर्ष आगे' की स्थिति पर प्रत्याशा के मजबूत होने को दर्शाता है। परिवारों द्वारा गैर-आवश्यक व्यय में वृद्धि के संकेत के साथ व्यय प्रत्याशाएँ व्यापक रूप से स्थिर बनी हुई हैं। जबकि पहली तिमाही में लागत दबाव कम होने की आशा है, बढ़ती लागत - निविष्टि, वित्तपोषण और स्टाफ - की प्रत्याशा अभी भी विशेष रूप से दूसरी तिमाही में व्यापक रूप से देखी जा रही है। उच्चतर बिक्री कीमतों से लाभ मार्जिन में सुधार हो रहा है। उन क्षेत्रों में जहां मांग में उछाल है, बिक्री कीमतों पर उच्च लागत का संचारण अधिक होगा। समग्र रूप से, लागत दबाव और बिक्री मूल्यों पर धारणाएँ विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न हैं।

25. अप्रैल-मई की हालिया अवधि के लिए उच्च आवृत्ति संकेतक एक मिश्रित तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। शहरी और मांग स्थितियों में सुधार दिख रहा है, विनिर्माण और सेवाओं के लिए पीएमआई बढ़ते उत्पादन को दर्शाते हैं। तथापि, परिवहन गतिविधि के मिश्रित संकेत भी हैं। रेलवे माल ढुलाई, बंदरगाह यातायात और मोटर स्पिरिट बिक्री में वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि दर पांच प्रतिशत से कम है, लेकिन ई-वे बिल और टोल संग्रह में दोहरे अंक की संवृद्धि दर्ज की जा रही है। अप्रैल में बाह्य व्यापार कमजोर हुआ है। गैर-खाद्य ऋण, जो आर्थिक गतिविधि का एक व्यापक माप है, में अप्रैल-मई 2023 के दौरान लगभग 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।

26. 2023-24 की समग्र संवृद्धि गति 2022-23 की तुलना में अधिक धीमी रहने की आशा है। एमपीसी की अप्रैल की बैठक में प्रस्तुत अनुमान 2022-23 के लिए संशोधित आधिकारिक अनुमानों से अधिक हैं। 2023-24 के लिए सकल जीडीपी संवृद्धि दर वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखी गई है। तिमाही वर्ष-दर-वर्ष संवृद्धि अनुमान क्रमशः पहली तिमाही: 8.0 प्रतिशत, दूसरी तिमाही: 6.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही: 6.0 प्रतिशत और चौथी तिमाही: 5.7 प्रतिशत हैं। संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण अधोगामी जोखिम मानसून के मौसम के दौरान प्रतिकूल वर्षा की स्थिति, वैश्विक मांग स्थितियों में प्रत्याशा से अधिक गिरावट और भू-राजनीतिक संघर्षों के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान हैं। अप्रैल के पूर्वानुमान की तुलना में, वर्तमान अनुमानों में पहली और दूसरी तिमाही में तिमाही संवृद्धि दर ऊर्ध्वगामी तथा तीसरी और चौथी तिमाही में अधोगामी संशोधित की गई है। भारतीय रिज़र्व बैंक का पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं का सर्वेक्षण 2023-24 के लिए 6.0 प्रतिशत का औसत पूर्वानुमान प्रदान करता है, जो पिछले दौर के समान है।

27. मार्च में 6 प्रतिशत से नीचे की गिरावट के बाद, हेडलाइन मुद्रास्फीति दर, वर्ष-दर-वर्ष, अप्रैल में 5 प्रतिशत से भी नीचे गिर गई। उपभोग समूह की सभी तीन मुख्य श्रेणियों: भोजन, ईंधन और 'मूल’ में मूल्य वृद्धि की दर में गिरावट आई। ईंधन और भोजन में गिरावट 'मूल' की तुलना में अधिक थी। महंगाई दर में यह व्यापक गिरावट मार्च में भी देखी गई थी। मार्च और अप्रैल में मुद्रास्फीति दर में उल्लेखनीय गिरावट में कई कारकों ने योगदान दिया है: अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट; प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति दरों में गिरावट, यद्यपि वे लक्ष्य से काफी ऊपर बनी हुई हैं; अनुकूल आधार प्रभाव; तथा मौद्रिक और नीतिगत उपायों का मुद्रास्फीति पर सीधे प्रभाव और मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं पर उनके प्रभाव के माध्यम से। भारतीय रिज़र्व बैंक के शहरी परिवारों के हालिया मुद्रास्फीति प्रत्याशा सर्वेक्षण में पाया गया है कि मौजूदा मुद्रास्फीति दरों के साथ, 3 महीने बाद और एक वर्ष बाद की औसत अपेक्षित मुद्रास्फीति दर पिछले दौर में उनके स्तर की तुलना में कम हो रही है।

28. वर्तमान रुख और मूल्य प्रवृत्तियों को प्रभावित करने वाले कारकों के आकलन को ध्यान में रखते हुए, वित्त वर्ष 2023-24 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की अनुमानित औसत हेडलाइन मुद्रास्फीति दर 5.1 प्रतिशत है, जिसमें तिमाही अनुमान पहली तिमाही में 4.6 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए अनुमानित मुद्रास्फीति दर पिछले वर्ष में अनुमानित 6.7 प्रतिशत की दर से काफी नीचे है और भारतीय रिज़र्व बैंक के पेशेवर पूर्वानुमानकर्ताओं के सर्वेक्षण में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए 5.0 प्रतिशत के औसत पूर्वानुमान के करीब है।

29. तथापि, मार्च और अप्रैल की हेडलाइन मुद्रास्फीति दर में देखे गए रुख की स्थिरता के प्रश्न पर कुछ चिंताएँ बनी हुई हैं। उपभोग समूह की कई उप-श्रेणियाँ में अभी भी 6 प्रतिशत से अधिक की मूल्य वृद्धि दर्ज की जा रही है। मार्च और अप्रैल में अनाज और उत्पादों के मामले में, वर्ष-दर-वर्ष आधार पर मूल्य वृद्धि दोहरे अंकों में है, और दूध और उत्पादों में 8 प्रतिशत से ऊपर है। कपड़े और जूते तथा घरेलू सामान और सेवाओं में मूल्य वृद्धि की दर भी मार्च और अप्रैल में 6 प्रतिशत या उससे ऊपर हैं। उपभोग समूह में वस्तुओं के व्यापक समूह में (1) खाद्य और पेय पदार्थ, (2) पान, तम्बाकू और नशीले पदार्थ और (3) ईंधन और प्रकाश को छोड़कर, 6 प्रतिशत या उससे अधिक की कीमत वृद्धि वाली वस्तुओं की हिस्सेदारी इस व्यापक समूह के भार की 45 प्रतिशत है। कई कमोडिटी समूहों के लिए मार्च की तुलना में अप्रैल में महीने-दर-महीने परिवर्तन अधिक है, तथापि महत्वपूर्ण 'आधार प्रभावों' ने वर्ष-दर-वर्ष हेडलाइन मुद्रास्फीति दर को कम कर दिया है। हेडलाइन मुद्रास्फीति दर को 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक कम करने की प्रवृत्ति की स्थिरता का आकलन करने में इन मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता है।

30. वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में मजबूत संवृद्धि निष्पादन के साथ हाल के दो महीनों में समग्र हेडलाइन मुद्रास्फीति में गिरावट वित्त वर्ष 2023 में 5 प्रतिशत से कम वार्षिक मुद्रास्फीति और 6 प्रतिशत से अधिक जीडीपी संवृद्धि का संकेत देती है। अनुमानित मुद्रास्फीति दर 6 प्रतिशत के उच्च सहन स्तर से नीचे है लेकिन 4 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी ऊपर है। क्षेत्रीय मूल्य प्रवृत्तियों के उभरने और वैश्विक स्तर पर विकास दोनों के कारण मुद्रास्फीति के ऊर्ध्वगामी जोखिम भी हैं। मई 2022 और अप्रैल 2023 के बीच नीतिगत दर में 250 आधार अंकों की वृद्धि और अन्य आर्थिक नीतिगत उपायों का प्रभाव मूल्य प्रत्याशाओं को स्थिर करने में महत्वपूर्ण रहा है। चूंकि नीतिगत परिवर्तनों का अर्थव्यवस्था के माध्यम से मुद्रास्फीति लक्ष्य तक पहुंचने हेतु संचारण अप्रत्याशित गतिविधियों के अधीन होता है, अतः यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि नीतिगत ढांचा संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए मुद्रास्फीति लक्ष्य प्राप्त करने पर केंद्रित हो।

31. तदनुसार, मैं:

(ए) नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने, और

(बी) निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो, के लिए वोट करता हूँ।

डॉ. आशिमा गोयल का वक्तव्य

32. वैश्विक अनिश्चितता जारी है, यद्यपि इसका आर्थिक प्रभाव अपेक्षा से कम गंभीर रहा है। प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्था (एई) केंद्रीय बैंकों ने अपनी सख्ती को धीमा कर दिया है। मुद्रास्फीति कम हो रही है, तथापि यह लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है। वे अधिक डेटा-आधारित दृष्टिकोण में परिवर्तित हो गए हैं और पिछली सख्ती के विलंबित प्रभावों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मुद्रास्फीति सत्तर के दशक जितनी ऊंची नहीं रही है, अतः लंबे समय तक नीतिगत दरें बढ़ाए बिना इसके बने रहने से डरने का कोई कारण नहीं है। श्रम बाजार सख्त बने हुए हैं, लेकिन यह आंशिक रूप से कोविड-19 के पश्चात श्रमिकों की कमी के बाद नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों के संग्रहण को प्रतिबिंबित करता है ताकि सख्ती को अधिमूल्यांकित किया जा सके। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक सख्ती की तुलना में राजकोषीय सख्ती का वैश्विक प्रभाव विस्तार कम होता है अतः उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में अधिक राजकोषीय समेकन से मौद्रिक नीति पर दबाव कम हो सकता है।

33. भारतीय संवृद्धि ने बाजार की प्रत्याशाओं से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन वित्त वर्ष 22 में 9.1% से गिरकर वित्त वर्ष 23 में 7.2% हो गई। तथापि, विनिर्माण क्षेत्र में कुछ बदलाव और वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही में स्थिर निवेश में निरंतर संवृद्धि भविष्य के लिए अच्छा संकेत है। निर्माण क्षेत्र भी मजबूत बना हुआ है, लेकिन खपत और निर्यात में नरमी है, सेवाओं की छिपी हुई मांग कम हो सकती है, और बेरोजगारी उच्च बनी हुई है।

34. मुद्रास्फीति कम होकर सहन-स्तर में आ गई है, लेकिन अभी भी मजबूती से लक्ष्य के पथ पर नहीं है, विशेषतया मानसून संबंधी अनिश्चितताओं को देखते हुए। फिर भी, यह स्पष्ट है कि मूल मुद्रास्फीति न तो स्थायी है और न ही व्यापक-आधारित है। मूल मुद्रास्फीति इस वर्ष जनवरी में 6.2% से गिरकर अप्रैल में 5.1% हो गई। अतिरिक्त मांग या सख्त श्रम बाजारों से दूसरे दौर के वास्तविक प्रभावों के अभाव में कमी की आशा की जा सकती है। कई आपूर्ति आघातों के कारण मुद्रास्फीति इतने लंबे समय तक उच्चतर थी।

35. आगे, कंपनियों का निविष्टि उत्पादन मूल्य अंतर लगभग समाप्त हो गया है, वित्त वर्ष 23 की चौथी तिमाही में लाभ मार्जिन तेजी से बढ़ा है, निविष्टि लागतों में गिरावट आई है, मजदूरी का दबाव नहीं है, और चूंकि मांग कम है, इसलिए कीमतें बढ़ने की संभावना नहीं है। डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति, जिसमें विनिर्माण कीमतों का बड़ा भार होता है, नकारात्मक है। आईआईएम अहमदाबाद कारोबार प्रत्याशा सर्वेक्षण कंपनियों की एक वर्ष आगे की कीमत और लागत मुद्रास्फीति के साथ-साथ बिक्री अपेक्षाओं में कमी दर्शाता है। तथापि, भारतीय रिज़र्व बैंक के उद्यम सर्वेक्षण के प्रारंभिक नतीजे दर्शाते हैं कि कंपनियों को वास्तविक लागत और मुद्रास्फीति में कमी के बावजूद कीमत और लागत मुद्रास्फीति बढ़ने की प्रत्याशा है। ऐसा मॉनसून और अगले कुछ महीनों के दौरान मंदी संबंधी आशंकाओं के कारण हो सकता है।

36. रेपो दर में तेजी से बढ़ोतरी ने वास्तविक दर को लगभग संतुलन स्तर पर ला दिया है, जिससे मांग में ओवर-हीटिंग के साथ-साथ अति-सख्ती को रोका गया है और मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने में मदद मिली है। गति को कम करना और विराम भी ठीक समय पर था।

37. पिछले कुछ वर्षों की सीख को आगे बढ़ाना जरूरी है, जिससे वास्तविक दरों को संतुलन के करीब रखने हेतु रेपो और विनिमय दरों में पर्याप्त मामूली परिवर्तन की अनुमति देने से आघातों के प्रभाव को कम करने और भारतीय संवृद्धि की आघात-सहनीयता को बनाए रखने में मदद मिली है। अनुभव से पता चला है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के मौद्रिक चक्रों से स्वतंत्रता संभव है और विदेशी अंतर्वाह उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की दरों के साथ ब्याज दर के विभेदक से मजबूती से संबद्ध नहीं है। मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण में लचीलापन, अतिरिक्त अस्थिरता को कम करने हेतु एफएक्स बाजारों में मध्यक्षेप, आर्थिक विविधता, आपूर्ति-पक्ष कार्रवाई और आपूर्ति आघातों के अंतर्गत बेहतर मौद्रिक-राजकोषीय समन्वय ने बेहतर परिणामों में योगदान दिया है।

38. जैसे कि अपेक्षा थी मुद्रास्फीति घटेगी, तथापि, यह महत्वपूर्ण है कि वास्तविक रेपो दर बहुत अधिक न बढ़े। वर्ष 2015 में यही हुआ जब अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतें गिर गईं, जिससे आर्थिक चक्र को नुकसान पहुंचा। अनुसंधान से पता चलता है कि मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण व्यवस्था ने मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को कम करने में योगदान दिया है। ऐसी व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता में केवल मौद्रिक रेपो दर को अपेक्षित मुद्रास्फीति के साथ संरेखित करना होता है। इस तरह की कार्रवाई, उभरते बाज़ारों में आधिकारिक संचार के अधिक प्रभाव के साथ, मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक लाने के लिए पर्याप्त है क्योंकि आघातों का प्रभाव कम हो जाता है। इसमें मौद्रिक रेपो को अधिक समय तक उच्च रखने की आवश्यकता नहीं है।

39. लेकिन इस बैठक में एमपीसी के लिए विराम लेना उचित है। मैं वर्तमान रुख को जारी रखने के लिए भी वोट करती हूं क्योंकि इस समय भविष्य की कार्रवाई के बारे में संकेत देना संभव नहीं है। बाद में यह आगामी डेटा पर निर्भर होगा। विराम केवल वर्तमान बैठक के लिए है। इसके अलावा, क्षणिक घटनाओं ने चलनिधि अधिशेष उत्पन्न कर दिया है, इसलिए चलनिधि को वापस लेना भी आवश्यक है।

प्रो. जयंत आर. वर्मा का वक्तव्य

40. अप्रैल की बैठक और इस बैठक के बीच मुद्रास्फीति और संवृद्धि संबंधी संभावना में केवल मामूली बदलाव आया है। जिन दो मुद्रास्फीति जोखिमों (कच्चे तेल की कीमतें और मानसून) के बारे में मैंने अप्रैल में बात की थी, वे थोड़े कम चिंताजनक हो गए हैं। कच्चे तेल के मोर्चे पर, अब यह स्पष्ट है कि ओपेक+ अल्प मांग का मुकाबला करने के लिए आपूर्ति को पर्याप्त रूप से कम करने के लिए संघर्ष कर रहा है, और निकट अवधि में कच्चे तेल की कीमत में पर्याप्त वृद्धि का जोखिम बहुत अधिक नहीं है। जहां तक मानसून का संबंध है, सामान्य मानसून का आधिकारिक पूर्वानुमान कुछ राहत प्रदान करता है, लेकिन यह इस तथ्य से प्रभावित है कि पूर्वानुमान में मानसून के सामान्य से कम या खराब होने की लगभग समान संभावना शामिल है। सौभाग्य से, कमजोर मानसून की पूर्वानुमानित संभावना जलवायु संबंधी संभावना से थोड़ी ही अधिक है, और सूखे की संभावना काफी कम प्रतीत होती है। यह एक शुभ संकेत है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था ऐसे मानसून के प्रति काफी आघात-सह है जो सामान्य से कुछ हद तक नीचे है, यदि इसका स्थानिक और अस्थायी वितरण संतोषजनक है। मुद्रास्फीति के जोखिमों में मामूली कमी का एक और संकेत, अप्रैल और जून की बैठकों के बीच 2023-24 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक के मुद्रास्फीति के अनुमानों में मामूली गिरावट है। इसी प्रकार, संवृद्धि संबंधी संभावना कमोबेश अप्रैल जैसा ही है, कई उच्च आवृत्ति संकेतक बताते हैं कि संवृद्धि उतनी सुदृढ़ नहीं है जितना हम चाहते हैं।

41. जोखिमों के संतुलन को ध्यान में रखते हुए, मैं इस बैठक में रेपो दर को अपरिवर्तित रखने के पक्ष में वोट करता हूँ। मेरा विचार है कि रेपो दर का मौजूदा स्तर मुद्रास्फीति को सतत आधार पर ऊपरी सहन सीमा बैंड के नीचे रखने और बैंड के मध्य की ओर ले जाने के लिए पर्याप्त उच्च है। तथापि, मुद्रास्फीति और संवृद्धि दोनों के लिए काफी जोखिम हैं, और मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने की प्रक्रिया अभी भी प्रगति पर है। केवल कुछ महीनों की मुद्रास्फीति प्रिंट के आधार पर इस समय जीत की घोषणा करना जल्दबाजी होगी। इस संदर्भ में, मैं एमपीसी के मौद्रिक नीति वक्तव्य में वक्तव्य के आत्म-बधाई वाले लहजे से बिल्कुल भी सहज नहीं हूं कि "एमपीसी ने मार्च-अप्रैल में सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति में आई नरमी को संज्ञान में लिया है, जो अनुमानों के अनुरूप सहन-सीमा बैंड में आ गई है, तथा यह मौद्रिक सख्ती और आपूर्ति बढ़ाने के उपायों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाता है।”

42. रुख की ओर बढ़ते हुए, मुझे लगता है कि हर क्रमिक बैठक के साथ, यह रुख वास्तविकता से और अधिक अलग होता जा रहा है। 2023-24 के लिए अनुमानित मुद्रास्फीति 5.1% के आधार पर, वास्तविक रेपो दर अब लगभग 1½% है। (वास्तविक अल्पकालिक दर उस स्तर से काफी ऊपर हो सकती है क्योंकि हाल के सप्ताहों में, कई मुद्रा बाजार दरें अक्सर 6.75% की एमएसएफ दर की ओर बढ़ गई हैं)। दूसरे शब्दों में, मौद्रिक नीति अब खतरनाक रूप से उन स्तरों के करीब है जहां से वह अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा सकती है। इसके बावजूद, एमपीसी के अधिकांश सदस्य निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखना चाहते हैं, चाहे उस वाक्यांश का अर्थ कुछ भी हो। अतः, मैंने संकल्प के इस भाग पर असहमति व्यक्त करने पर गंभीरता से विचार किया है, लेकिन सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद मैंने इस पर आपत्ति व्यक्त करने तक ही स्वयं को सीमित रखने का निर्णय लिया है। असहमति न जताने का मुख्य कारण यह है कि, लगातार दो बैठकों के बाद, जिसमें रेपो दर को अपरिवर्तित छोड़ दिया गया है, यह रुख अब गंभीर इरादे वाली वक्तव्य की तुलना में अधिक अवशेषी प्रतीत होता है।

डॉ. राजीव रंजन का वक्तव्य

43. अप्रैल 2023 के मेरे पिछले वक्तव्य में दर कार्रवाई को रोकने के लिए उल्लिखित कारण मोटे तौर पर इस बैठक के लिए भी लागू होते हैं। इसके अलावा, जैसा कि संवृद्धि और मुद्रास्फीति के नवीनतम प्रिंट गोल्डीलॉक्स परिदृश्य का संकेत देते हैं, जिसमें संवृद्धि अधिक है और मुद्रास्फीति अनुमान से थोड़ी कम है, यह हमें बता रहा है कि अब तक की गई हमारी संचयी कार्रवाई सही दिशा में काम कर रही है। हालाँकि, यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि कब रुकना है यह जानना कठिन है। सख्त नीति का प्रभाव ठहराव के महीनों बाद भी प्रणाली को प्रभावित करता रहेगा। यदि नीति निर्माता तब तक सख्ती जारी रखते हैं जब तक कि मुद्रास्फीति उतनी गिर न जाए जितनी वे चाहते हैं, तब वे आवश्यकता से अधिक दूर जा सकते हैं (रोमर और रोमर, 2023)1। इसके बावजूद, यह महत्वपूर्ण है कि हम मुद्रास्फीति के प्रति अपनी सतर्कता न छोड़ें, खासकर तब जब हम मुद्रास्फीति को 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य तक लाने के अपने प्राथमिक लक्ष्य से अभी भी दूर हैं।

44. घरेलू संवृद्धि के मोर्चे पर, मेरे शुरुआती कार्यवृत्त में व्यक्त आशावाद साकार हो गया है, क्योंकि 2022-23 की चौथी तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पिछली तिमाही में 4.5 प्रतिशत से बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई है। तिमाही-दर-तिमाही (क्यूओक्यू) मौसमी रूप से समायोजित गति चौथी तिमाही में 2.9 प्रतिशत रही, जो महामारी-पूर्व औसत 1.7 प्रतिशत (2012-13 से 2019-20) से काफी ऊपर है, जोकि आगे चलकर संवृद्धि के लिए अच्छा संकेत है। इसके अलावा, जैसा कि विभिन्न उच्च आवृत्ति संकेतकों से संकेत मिलता है, 2023-24 की पहली तिमाही2 में आर्थिक गतिविधि अच्छी रहने के स्पष्ट संकेत हैं और यह आशावाद 2023-24 की शेष तिमाहियों में भी बने रहने की उम्मीद है। यह तीन कारकों से उपजा है: (i) ग्रामीण उपभोग में पुनरुद्धार; (ii) जोर पकड़ रहा निजी कॉर्पोरेट निवेश; और (iii) निवल बाह्य मांग से खिंचाव को कम करना। मैं इसे विस्तार से बताना चाहूँगा। मजबूत रबी खाद्यान्न उत्पादन और अपेक्षित सामान्य मानसून से ग्रामीण मांग को समर्थन मिला है3। सकल जीवीए में कृषि की कम हिस्सेदारी (2022-23 में लगभग 15 प्रतिशत) और जीडीपी वृद्धि में इसके योगदान को देखते हुए, भले ही मानसून सामान्य से कम हो, संवृद्धि पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। दूसरी ओर, सीपीआई उपभोग समूह में खाद्य पदार्थों की अधिक हिस्सेदारी के कारण कमजोर मानसून का मुद्रास्फीति पर अधिक ठोस प्रभाव पड़ सकता है।

45. इनपुट लागत का दबाव कम होने और क्षमता उपयोग बढ़ने के कारण कॉर्पोरेट निवेश में पुनरुद्धार बढ़ रहा है। बड़े उद्योगों, विशेषकर सड़क, इस्पात, सीमेंट, निर्माण, पेट्रोलियम और रसायन के कारण उद्योग को प्रदत्त ऋण संवृद्धि में सुधार हुआ है। आपूर्ति पक्ष पर, विनिर्माण क्षेत्र का कार्यनिष्पादन, जो 2022-23 की चौथी तिमाही में सकारात्मक हो गया, उसमें कमोडिटी की कीमतों में नरमी, आपूर्ति शृंखलाओं के सामान्य होने और उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के जोर पकड़ने से और सुधार होने की संभावना है। कई प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण कंपनियों ने अपनी अचल संपत्तियों का विस्तार किया है। कुल सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 63 प्रतिशत थी और 2022-23 के दौरान जीवीए की वृद्धि में इसका लगभग 83 प्रतिशत का योगदान रहा तथा 2023-24 में संवृद्धि का मुख्य आधार बने रहने की उम्मीद है। वस्तु आयात में उच्च संकुचन के साथ-साथ सेवा निर्यात में बढ़ोतरी से निवल बाहरी मांग में सुधार हो रहा है।

46. अनुकूल आधार प्रभावों और सौम्य मूल्य गति द्वारा समर्थित, फरवरी और अप्रैल 2023 के बीच हेडलाइन सीपीआई मुद्रास्फीति में 1.7 प्रतिशत अंक की तेज गिरावट आई। मूल मुद्रास्फीति में नरमी, विभिन्न अपवर्जन आधार के साथ-साथ छंटनी किए गए औसत उपायों में देखी गई। सीपीआई प्रसार सूचकांकों से पता चलता है कि मार्च-अप्रैल 2023 के दौरान अधिकांश सीपीआई वस्तुओं की कीमतों में 6 प्रतिशत की मौसमी समायोजित वार्षिक दर (एसएएआर) से कम वृद्धि देखी गई, जिसमें फरवरी की तुलना में काफी बदलाव आया है। ये सभी हाल के महीनों में सीपीआई में मूल्य दबाव में कुछ कमी का सुझाव देते हैं, क्योंकि मौद्रिक नीति कार्यों, आपूर्ति पक्ष के उपायों और वैश्विक कमोडिटी कीमतों में कमी का प्रभाव पड़ा है। हालाँकि, मुद्रास्फीति संपूर्ण वर्ष 4 प्रतिशत की लक्ष्य दर से काफी ऊपर रहने की संभावना है।

47. हम समयानुसार समष्टि-आर्थिक प्राथमिकताओं को संतुलित करने में सहन-सीमा बैंड के भीतर काम करने के लिए फ्रेमवर्क में अंतर्निहित लचीलेपन का उपयोग करते हुए अपने दृष्टिकोण में विवेकपूर्ण रहे हैं। समष्टि मोर्चों पर अधिक स्पष्टता के साथ, इस विवेक की आवश्यकता है कि अब हम मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक सीमित करने पर ध्यान केंद्रित करें। मुद्रास्फीति लक्ष्य और लक्ष्य से विचलन की सहन-सीमा के बीच के अंतर पर जोर देने के लिए यह समय उपयुक्त है। अर्थव्यवस्था की (वर्तमान और भविष्य) स्थिति के अपूर्ण ज्ञान; उदासीनता की वह सीमा जिस पर मौद्रिक नीति से प्रतिक्रिया अपेक्षित नहीं है; और अंततः, परिचालन सीमा, जो मुद्रास्फीति और संवृद्धि के बीच अल्पकालिक ट्रेड-ऑफ के लिए जानबूझकर विचलन की अनुमति देती है, के कारण सहन-सीमा बैंड को वैचारिक रूप से अनिश्चितता की सीमा4 में विभाजित किया जा सकता है (चुंग एट अल, 2020)5। लक्ष्य से मुद्रास्फीति के निरंतर विचलन से मुद्रास्फीति के अनुमानों में लगातार गिरावट आ सकती है। परिचालन सीमा के हिस्से को उदासीनता सीमा तक छोड़ने का जोखिम, 4 प्रतिशत मुद्रास्फीति लक्ष्य की प्रधानता पर जोर देना अनिवार्य बनाता है। लक्ष्य के आसपास मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को नियंत्रित करने की चल रही प्रक्रिया का समर्थन करने के लिए यह महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, वास्तविक नीति दर सकारात्मक बनी हुई है जो आगे चलकर मुद्रास्फीति अपेक्षाओं को नियंत्रित करेगी।

48. ऐसा लगता है कि अप्रैल में दर में ठहराव का घरेलू वित्तीय स्थितियों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। उदाहरणस्वरूप, 1-वर्षीय जी-सेक, 91-दिवसीय खजाना बिल की तुलना में 10-वर्षीय जी-सेक प्रतिफल का औसत स्प्रेड, और नीतिगत रेपो दर 6 अप्रैल - 7 जून 2023 के दौरान क्रमशः 20 बीपीएस, 29 बीपीएस और 58 बीपीएस तक कम हो गई। ऋण बाजार में, नए रुपये ऋण पर भारित औसत उधार दर (डब्ल्यूएएलआर) और अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की नई जमाराशियों पर भारित औसत घरेलू मीयादी जमा दर (डब्ल्यूएडीटीडीआर) में अप्रैल 2023 में क्रमशः 23 बीपीएस और 12 बीपीएस की गिरावट आई। वित्तीय स्थितियों में ढील दी गई, जबकि एमपीसी ने स्पष्ट रूप से तर्क दिया था कि यह ठहराव अप्रैल की नीति के लिए विशिष्ट था, न कि कोई नीतिगत केंद्र बिन्दु था । तदनुसार, मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य तक लाने के स्पष्ट उद्देश्य के साथ रुख में निरंतरता महत्वपूर्ण है। रुख में कोई भी समायापूर्व बदलाव जल्दबाजी हो सकता है और अब तक की गई कड़ी मेहनत पर पानी फेर सकता है। यह वर्तमान में चल रही संचरण प्रक्रिया को भी नुकसान कर सकता है। कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं द्वारा एक ठहराव के बाद दरों में बढ़ोतरी की हालिया कार्रवाइयों को ध्यान में रखने की जरूरत है। इस प्रकार, मैं दर कार्रवाई में ठहराव और रुख की निरंतरता के लिए वोट करता हूं। पिछले कार्यों के प्रभाव का आकलन करके, प्राप्त आंकड़ों की सावधानीपूर्वक जांच करके और उभरती समष्टि-आर्थिक स्थितियों पर उचित प्रतिक्रिया देकर मौद्रिक नीति कार्यों को सावधानीपूर्वक सुविचारित करने की आवश्यकता होगी।

डॉ. माइकल देवब्रत पात्र का वक्तव्य

49. व्यापक आर्थिक परिणाम मोटे तौर पर अनुमानित पथों के साथ विकसित हुए हैं, जो अप्रैल 2023 के मौद्रिक नीति निर्णय और रुख की पुष्टि करते हैं। यह पहले से की गई संचयी कार्रवाइयों और अर्थव्यवस्था पर मौद्रिक नीति के प्रभावों के अंतराल को ध्यान में रखते हुए, भविष्योन्मुखी सर्वेक्षणों के वर्तमान दौर और लक्ष्य चर के अद्यतन पूर्वानुमानों से प्राप्त जानकारी के साथ उभरते संभावनाओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करता है।

50. कुल मिलाकर, भारत में वास्तविक जीडीपी संवृद्धि की संभावना अप्रैल की तुलना में बेहतर है। ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्विक जोखिम फिलहाल नियंत्रित हैं, लेकिन मानसून संबंधी विशेष प्रकृति के जोखिम बढ़ गए हैं और आने वाले महीनों में इन्हें दूर करने की जरूरत है। वित्तीय स्थितियां काफी हद तक आसान हो गई हैं, और घरेलू वित्तीय बाजार, मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को फिर से मजबूत करने के साथ-साथ स्थिर संवृद्धि संभावनाओं को प्रतिबिंबित कर रहे हैं।

51. मुद्रास्फीति के लिए निकट अवधि की संभावना भी 2022-23 के अनुभव की तुलना में अपेक्षाकृत सौम्य है। हालाँकि, पहली तिमाही से परे, विशिष्ट आपूर्ति-मांग बेमेल से उत्पन्न दबाव बिंदु, कीमतों की गति पर ऊपर की ओर दबाव डाल सकते हैं और अनुकूल आधार प्रभावों को प्रतितुलन कर सकते हैं, विशेषकर 2023-24 की दूसरी छमाही में। अतः, मौद्रिक नीति को 'ब्रेस' मोड में रहने की जरूरत है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इन झटकों का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर कोई निशान छोड़े बिना खत्म हो जाए।

52. तदनुसार, नीति दर पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए मेरे वोट को बाउंसर पिच की तैयारी के लिए मिडल स्टंप गार्ड लेने के रूप में देखा जाना चाहिए। दर को अपरिवर्तित रखने को, ब्याज दर चक्र के चरम पर पहुंचने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त नीति सख्त करने की सीमा पर निर्णय के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन की अवधि के रूप में की जानी चाहिए। यह एमपीसी की अगली बैठक तक नई जानकारी के साथ अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित संरचना के बारे में निरंतर सीखने का एक हिस्सा है, न कि लंबे समय तक रुकना। हेडलाइन मुद्रास्फीति लक्ष्य की ओर बढ़ रही है, लेकिन यह अभी भी इससे काफी ऊपर है और जोखिमों का संतुलन बताता है कि आने वाले महीनों में नीचे आने से पहले यह ऊपर जाएगी। अतः, निभाव वापस लेने के रुख को जारी रखना उचित है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों के भविष्य के क्रम को पर्याप्त रूप से बताता है।

श्री शक्तिकान्त दास का वक्तव्य

53. वैश्विक अर्थव्यवस्था ने संवृद्धि की गति को बरकरार रखा है और समग्र अनिश्चितता कुछ हद तक कम हो रही है। फिर भी, वैश्विक संवृद्धि संभावनाओं में बाधाएँ बनी हुई हैं। भू-राजनीतिक संघर्ष निरंतर जारी है। सभी देशों में हेडलाइन मुद्रास्फीति नीचे की ओर जा रही है, लेकिन अभी भी उच्च और अपने लक्ष्यों से ऊपर है। केंद्रीय बैंक हाई अलर्ट पर हैं और उभरती स्थितियों पर नजर रख रहे हैं।

54. भारत की समष्टि आर्थिक बुनियाद मजबूत हो रही है और संवृद्धि की संभावनाएं लगातार बेहतर हो रही हैं और व्यापक हो रही हैं। मुद्रास्फीति कम हुई है और बाह्य क्षेत्र की संभावना बेहतर हुई है। बैंकों और कॉरपोरेट्स के तुलन- पत्र आघात-सह और स्वस्थ दिखती है, जिससे संवृद्धि के लिए दोहरे तुलन-पत्र का लाभ उत्पन्न होता है। ग्रामीण मांग और निवेश गतिविधि में सुधार के कारण मांग की स्थितियाँ संवृद्धि के लिए सहायक बनी हुई हैं। शहरी मांग मजबूत बनी हुई है। उपभोक्ता और व्यावसायिक संभावना सर्वेक्षण निरंतर आशावाद का प्रदर्शन कर रहे हैं। कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24 में 6.5 प्रतिशत की अपेक्षित वास्तविक जीडीपी संवृद्धि के साथ आघात-सह और स्थिरता की कहानी प्रस्तुत करती है। समष्टि आर्थिक और वित्तीय स्थिरता अब अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी है और इसे अच्छी तरह से संतुलित और समय पर कार्रवाई के साथ पोषित और संरक्षित करने की आवश्यकता है।

55. जैसा कि अनुमान था, मार्च-अप्रैल 2023 के दौरान मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र में महत्वपूर्ण नरमी देखी गई है, और निकट अवधि की संभावना पहले की तुलना में अधिक अनुकूल हो गया है। मुद्रास्फीति अब 2022-23 में 6.7 प्रतिशत की तुलना में 2023-24 में औसतन 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, लेकिन यह अभी भी लक्ष्य से ऊपर होगी। 4 प्रतिशत की लक्ष्य दर के प्रति अवस्फीति क्रमिक और लंबी होने की संभावना है। अप्रैल की तुलना में, एच2:2023-24 के लिए मुद्रास्फीति संभावना पर अनिश्चितताएं कम नहीं हुई हैं। संभावित अल नीनो मौसम के मिजाज की पृष्ठभूमि में दक्षिण-पश्चिम मानसून के स्थानिक और अस्थायी वितरण को, खासकर खाद्य कीमतों पर इसके प्रभाव के लिए, ध्यान से देखने की जरूरत है। चावल और चीनी जैसी प्रमुख खाद्य वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें ऊंचे स्तर पर हैं। प्रतिकूल जलवायु घटनाओं में मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र की दिशा को तेजी से बदलने की क्षमता है। भू-राजनीतिक तनाव, कच्चे तेल की कीमत प्रक्षेपवक्र पर अनिश्चितता और अस्थिर वित्तीय बाजार, कीमतों में और बढ़ोतरी का जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन स्थितियों में उभरते मूल्य गतिशीलता की करीबी निगरानी आवश्यक है।

56. अप्रैल एमपीसी में ठहराव, पिछले एक वर्ष में 250 बीपीएस दर वृद्धि के संचयी प्रभाव का आकलन करने की आवश्यकता पर आधारित था। हमारे सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि प्रत्याशाओं को नियंत्रित करने का कार्य चल रहा है और हमारी मौद्रिक नीति कार्रवाइयां वांछित परिणाम दे रही हैं। 2023-24 के लिए आधारभूत मुद्रास्फीति अनुमानों को देखते हुए, सकारात्मक वास्तविक नीति दरें, चल रही अवस्फीति प्रक्रिया में सहायता करेंगी। पिछली कार्यवाईयों का पूरा प्रभाव अभी भी सामने आ रहा है। ऐसी स्थिति में, एमपीसी की इस बैठक के लिए दर वृद्धि चक्र को रोकना और उभरती स्थिति का बारीकी से आकलन करना सबसे उपयुक्त विकल्प दिखता है। तदनुसार, मैं एमपीसी की इस बैठक में नीति दर को अपरिवर्तित रखने के लिए वोट करता हूं।

57. मुद्रास्फीति को लक्ष्य के दायरे में लाकर हमारा काम अभी आधा-अधूरा ही हुआ है। महंगाई के विरुद्ध हमारी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हमें उभरते मुद्रास्फीति-संवृद्धि संभावना का दूरदर्शी मूल्यांकन करने की आवश्यकता है और यदि आवश्यक हो तो कार्रवाई करने के लिए तैयार रहना होगा। इससे परे और मौजूदा अनिश्चितताओं को देखते हुए, दर सख्ती चक्र में हमारी भविष्य की कार्रवाई के बारे में कोई निश्चित मार्गदर्शन देना मुश्किल है।

58. मैं निभाव वापस लेने के रुख को जारी रखने के लिए भी वोट करता हूं, यह देखते हुए कि बैंकिंग प्रणाली में चलनिधि अभी भी अधिशेष में है और हमारे पास टिकाऊ आधार पर हेडलाइन मुद्रास्फीति को 4.0 प्रतिशत लक्ष्य के साथ संरेखित करने और यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि समग्र वित्तीय स्थितियां मौद्रिक नीति रुख के अनुरूप हो। हम दो-तरफा परिचालन के माध्यम से चलनिधि प्रबंधन में चुस्त और लचीले बने रहेंगे। हम मानते हैं कि टिकाऊ मूल्य और वित्तीय स्थिरता परस्पर सुदृढ़ हैं और वर्तमान समय में अधिक नीतिगत फोकस की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के कार्यों को उसी के अनुसार आकार दिया जाएगा।

1 रोमर सी.डी. और डेविड एच. रोमर (2023), “डज मोनेटरी पॉलिसी मैटर? द नैरेटिव अप्रोच आफ्टर 35 इयर्स”, अमेरिकन इकोनॉमिक रिव्यू, खंड 113, अंक 6, जून।

2 2023-24 की पहली तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद को आधार प्रभाव से भी लाभ होगा जो अभी तक सामान्य नहीं हुआ है।

3 रबी का लगभग 55 प्रतिशत उत्पादन 2023-24 की पहली तिमाही में हुआ है।

4 इसमें पूर्वानुमान संबंधी त्रुटियां, नाइटियन अनिश्चितता समेत अन्य शामिल हैं।

5 https://www.federalreserve.gov/econres/feds/files/2020075pap.pdf




(साभार: www.rbi.org.in)

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Rajanish Kant शनिवार, 24 जून 2023
Home Loan लेने वालों के बुरे दिन खत्म, जानें वजह !
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Rajanish Kant सोमवार, 12 जून 2023
RBI ने Repo Rate को 6.50% पर स्थिर रखा, कहा- महंगाई अभी भी लक्ष्य के ऊपर, जानिये महंगाई और ग्रोथ पर अनुमान

 


देश के केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक पॉलिसी कमिटी (MPC) ने उम्मीद के मुताबिक रेपो रेट को  6.50 प्रतिशत पर स्थिर रखा है। रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने 6 जून से 8 जून तक चली इस बैठक के बाद कहा कि महंगाई दर में हाल के दिनों में कमी आई है, लेकिन अभी भी लक्ष्य के ऊपर बनी हुई है, इसलिये उस पर चौकसी जरूरी है। दास ने कहा कि सख्त मौद्रिक नीति और आपूर्ति में सुधार की वजह से महंगाई दर में कमी आई है। 

>RBI की मौजूदा प्रमुख दर: ((साभार: www.rbi.org.in)
नीति रिपो दर: 6.50%
स्थायी जमा सुविधा दर: 6.25%
सीमांत स्‍थायी सुविधा दर: 6.75%
बैंक दर: 6.75%
प्रत्‍यावर्तनीय रिपो दर: 3.35%

सीआरआर: 4.50%

एसएलआर: 18.00%


सीपीआई महंगाई दर 2023-24 में 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इस दौरान पहली तिमाही में महंगाई दर 4.6 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत रहेगी।

जहां तक वास्तविक जीडीपी ग्रोथ की बात है, तो 2023-24 में इसे 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना जताई है। इस दौरान पहली तिमाही यह 8 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.7 प्रतिशत रहेगी।

आरबीआई की इस बैठक का मिनट्स 22 जून को प्रकाशित किया जाएगा। आरबीआई मौद्रिक पॉलिसी कमिटी की प्रमुख दरों पर फैसला लेने के लिए अगली बैठक 8 से 10 अगस्त को होगी। आपको बता दूं कि जून से पहले अप्रैल में हुई बैठक के दौरान भी प्रमुख दरों को जस का तस रखा गया था। हालांकि, पिछले साल मई से लेकर इस साल फरवरी तक की बैठक के दौरान रेपो रेट में महंगाई पर काबू रखने के लिए कुल मिलाकर 2.50 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जा चुकी है। 

मौद्रिक नीति वक्तव्य, 2023-24
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का संकल्प
6-8 जून 2023

वर्तमान और उभरती समष्टि-आर्थिक परिस्थिति का आकलन करने के आधार पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आज (8 जून 2023) अपनी बैठक में यह निर्णय लिया है कि:

  • चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के अंतर्गत नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा जाए।

स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर 6.25 प्रतिशत तथा सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनी हुई है।

  • एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

ये निर्णय, संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति को +/- 2 प्रतिशत के दायरे में रखते हुए 4 प्रतिशत का मध्यावधि लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप है।

इस निर्णय में अंतर्निहित मुख्य विचार नीचे दिए गए विवरण में व्यक्त किए गए हैं।

आकलन

वैश्विक अर्थव्यवस्था

2. 2023 की दूसरी तिमाही में, मुद्रास्फीति में कमी लेकिन फिर भी बढ़ी हुई, सख्त वित्तीय स्थिति, बैंकिंग क्षेत्र में तनाव, और दीर्घकालिक भू-राजनीतिक संघर्षों के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था पिछली तिमाही में प्राप्त गति को बनाए रख रही है। मौद्रिक नीति के सख्त चक्र के आसन्न बढ़ोत्तरी की प्रत्याशाओं पर सॉवरेन बॉन्ड प्रतिफल एक तरफ से (साइडवेज) कारोबार कर रही है, जबकि अमेरिकी डॉलर की मूल्यवृद्धि हुई है। एमपीसी की पिछली बैठक के बाद से इक्विटी बाजार सीमित दायरे में बने हुए हैं। कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) के लिए कमजोर बाहरी मांग, उच्च ऋण स्तर और सख्त बाहरी वित्तीय स्थितियों के बीच भू-आर्थिक विघटन, संवृद्धि की संभावनाओं के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं, हालांकि नवीन जोखिम वहन क्षमता पर पूंजी प्रवाह सावधानीपूर्वक उनके पास लौट रहे हैं।

घरेलू अर्थव्यवस्था

3. 31 मई 2023 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी अनंतिम अनुमानों के अनुसार, भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) संवृद्धि 2022-23 की तीसरी तिमाही में 4.5 प्रतिशत (वर्ष-दर-वर्ष, वाई-ओ-वाई) से बढ़कर चौथी तिमाही में 6.1 प्रतिशत हो गई, जोकि नियत निवेश और उच्च निवल निर्यात द्वारा समर्थित है। 2022-23 के लिए वास्तविक जीडीपी संवृद्धि 7.2 प्रतिशत रही, जो 7.0 प्रतिशत के दूसरे अग्रिम अनुमान से अधिक है।

4. जैसा कि उच्च आवृत्ति संकेतकों में परिलक्षित होता है, 2023-24 की पहली तिमाही में घरेलू आर्थिक गतिविधि आघात-सहनीय बनी हुई है। विनिर्माण और सेवाओं के लिए क्रय प्रबंधकों के सूचकांक (पीएमआई) ने निरंतर विस्तार का संकेत दिया, साथ ही, मई में विनिर्माण पीएमआई 31 महीने के उच्च स्तर पर और सेवा पीएमआई अप्रैल-मई में 13-वर्ष के उच्च स्तर पर रहा। सेवा क्षेत्र में, घरेलू हवाई यात्री यातायात, ई-वे बिल, टोल संग्रह और डीजल की खपत में अप्रैल-मई में उछाल देखा गया, जबकि रेलवे माल भाड़ा और बंदरगाह यातायात में मामूली संवृद्धि दर्ज की गई।

5. जैसा कि यात्री वाहनों की बिक्री और घरेलू हवाई यात्री यातायात जैसे संकेतकों में परिलक्षित होता है, मांग पक्ष पर शहरी खर्च मजबूत बना हुआ है, जिसमें अप्रैल में दोहरे अंकों की संवृद्धि दर्ज की गई। ग्रामीण मांग में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, हालांकि असमान रूप से - अप्रैल में मोटरसाइकिल की बिक्री बढ़ी, जबकि बेमौसम बारिश के कारण ट्रैक्टर की बिक्री में आंशिक कमी आई। अप्रैल में इस्पात की खपत और सीमेंट उत्पादन में बेहतर विस्तार से परिलक्षित निवेश गतिविधि बढ़ रही है। पण्य निर्यात और तेल से इतर स्वर्ण से इतर आयात में अप्रैल में कमी देखी गई, जबकि सेवा निर्यात में एक मजबूत विस्तार बरकरार रहा।

6. बृहद अनुकूल आधार प्रभावों के कारण सीपीआई मुद्रास्फीति, फरवरी में 6.4 प्रतिशत से तेजी से गिरकर अप्रैल 2023 में 4.7 प्रतिशत हो गई, जिसमें सभी तीन प्रमुख समूहों में नरमी देखी गई थी। अनाज, अंडे, दूध, फल, मांस और मछली, मसालों और तैयार खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी और खाद्य तेलों में अपस्फीति के गहन होने से खाद्य समूह मुद्रास्फीति में कमी आई। ईंधन समूह में, एलपीजी तथा जलाऊ लकड़ी में मुद्रास्फीति और चिप्स की कीमतों में गिरावट आई तथा मिट्टी के तेल की कीमतें अवस्फीति में चली गईं। मूल मुद्रास्फीति (अर्थात्, खाद्य और ईंधन को छोड़कर सीपीआई मुद्रास्फीति) कम हो गई, जोकि कपड़े और जूते, घरेलू सामान और सेवाएं, स्वास्थ्य, परिवहन और संचार, व्यक्तिगत देखभाल और प्रभाव तथा मनोरंजन और मनोरंजन के उप-समूहों द्वारा संचालित है।

7. एलएएफ के अंतर्गत औसत दैनिक अवशोषण, फरवरी-मार्च में 1.4 लाख करोड़ से बढ़कर अप्रैल-मई के दौरान 1.7 लाख करोड़ हो गया। 19 मई 2023 तक मुद्रा आपूर्ति (एम3) में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 10.1 प्रतिशत और खाद्य से इतर बैंक ऋण में 15.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2 जून 2023 को भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 595.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।

संभावना

8. आगे चलकर, हेडलाइन मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र को खाद्य मूल्य गतिकी द्वारा आकार दिए जाने की संभावना है। मंडी में बेहतर आवक और खरीद से गेहूं की कीमतों में कुछ सुधार देखने को मिल सकता है। दूसरी ओर, आपूर्ति में कमी और उच्च चारा लागत के कारण दूध की कीमतों पर दबाव बने रहने की संभावना है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून का पूर्वानुमान खरीफ फसलों के लिए शुभ संकेत देता है; तथापि, कृषि उत्पादन की संभावनाओं का आकलन करने के लिए मानसून के स्थानिक और अस्थायी वितरण की बारीकी से निगरानी करने की आवश्यकता होगी। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है लेकिन संभावना अनिश्चित बना हुआ है। रिज़र्व बैंक के सर्वेक्षणों के शुरुआती परिणामों के अनुसार, विनिर्माण, सेवाओं और अवसंरचना फर्मों ने इनपुट लागत और आउटपुट कीमतों के सख्त होने की उम्मीद की। अंतिम सर्वेक्षण के परिणाम आने पर एक स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए और एक सामान्य मानसून अनुमान करते हुए, सीपीआई मुद्रास्फीति 2023-24 के लिए 5.1 प्रतिशत अनुमानित है, जिसका कि पहली तिमाही में 4.6 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 5.2 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 5.4 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.2 प्रतिशत रहने की संभावना है। जोखिम समान रूप से संतुलित हैं (चार्ट 1)।

9. 2022-23 में उच्च रबी फसल उत्पादन, अपेक्षित सामान्य मानसून, और सेवाओं में निरंतर उछाल से चालू वर्ष में निजी खपत और समग्र आर्थिक गतिविधि को समर्थन मिलना चाहिए। पूंजीगत व्यय पर सरकार के जोर, पण्य की कीमतों में नरमी और मजबूत ऋण वृद्धि से निवेश गतिविधियों में बेहतरी आने की उम्मीद है। हालांकि, कमजोर बाहरी मांग, भू-आर्थिक विखंडन, और दीर्घकालिक भू-राजनीतिक तनाव, संभावना के लिए जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, 2023-24 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि 6.5 प्रतिशत अनुमानित है, जिसका कि पहली तिमाही में 8.0 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.0 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, साथ ही, जोखिम समान रूप से संतुलित है (चार्ट 2)।

Chart 1 and 2

10. एमपीसी ने मार्च-अप्रैल में सीपीआई हेडलाइन मुद्रास्फीति में आई नरमी को संज्ञान में लिया है, जो अनुमानों के अनुरूप सहन-सीमा बैंड में आ गई है, तथा यह मौद्रिक सख्ती और आपूर्ति बढ़ाने के उपायों के संयुक्त प्रभाव को दर्शाता है। हेडलाइन मुद्रास्फीति के 2022-23 के स्तर से 2023-24 में कम होने का अनुमान है, लेकिन यह अभी भी लक्ष्य से ऊपर रहेगी, जिसके लिए निरंतर सतर्क रहने की आवश्यकता है। इस संबंध में दक्षिण पश्चिम मानसून की प्रगति महत्वपूर्ण है। घरेलू आर्थिक गतिविधियां बेहतर बनी हुई हैं। उपभोक्ता विश्वास में सुधार हो रहा है और व्यवसाय भविष्य को लेकर आशावादी बने हुए हैं। एमपीसी द्वारा की गई 250 आधार अंकों की संचयी दर वृद्धि अर्थव्यवस्था में प्रसारित हो रही है और इसके पूर्ण प्रभाव से आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति के दबावों को नियंत्रित रहना चाहिए। लक्ष्य के साथ मुद्रास्फीति के संरेखण के लिए मौद्रिक नीति को सावधानीपूर्वक कैलिब्रेट करने की आवश्यकता होगी। इस पृष्ठभूमि पर, एमपीसी ने नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया। एमपीसी ने उभरती हुई मुद्रास्फीति और संवृद्धि की संभावना पर कड़ी निगरानी जारी रखने का संकल्प लिया। मुद्रास्फीति की प्रत्याशाओं को पुख्ता ढंग से नियंत्रित रखने और मुद्रास्फीति को लक्ष्य तक कम करने के लिए यह त्वरित और उचित रूप से आवश्यक मौद्रिक कार्रवाई करेगा। एमपीसी ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने का भी निर्णय लिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो।

11. एमपीसी के सभी सदस्य - डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के लिए वोट किया।

12. डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देवब्रत पात्र और श्री शक्तिकान्त दास ने निभाव को वापस लेने पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए वोट किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति उतरोत्तर संवृद्धि को समर्थन प्रदान करते हुए लक्ष्य के साथ संरेखित हो। प्रो. जयंत आर. वर्मा ने संकल्प के इस हिस्से पर आपत्ति जताई।

13. एमपीसी की बैठक का कार्यवृत्त 22 जून 2023 को प्रकाशित किया जाएगा।

14. एमपीसी की अगली बैठक 8-10 अगस्त 2023 के दौरान निर्धारित है।

(साभार- www.rbi.org.in)
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Rajanish Kant गुरुवार, 8 जून 2023