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बैंकों ने 10,09,511 लाख करोड़ रु. का कर्ज राइट ऑफ किया, उसमें से वसूली हुई 1,32,036 लाख करोड़ रु.-निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री


पिछले पांच वित्त वर्ष के दौरान अनुसूचित कमर्शियल बैंक जैसे कि एसबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, यूको बैंक बगैरह ने  10,09,511 लाख करोड़ रु. का कर्ज राइट ऑफ किया, उसमें से केवल 1,32,036 लाख करोड़ रु. की वसूली हुई है। देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी जानकारी दी। हालांकि इस दौरान कर्जदारों से कुल मिलाकर 6,59,596 लाख करोड़ रुपए की वसूली की गई। 

राइट ऑफ का मतलब होता है बैलेंस शीट से कर्ज को निकालकर बैलेंस शीट को ठीक करना। राइट ऑफ का मतलब कर्ज माफ करना नहीं होता है। निर्मला सीतारमण ने बताया कि कर्ज का राइट ऑफ कर्जदारों को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं किया जाता है। 

बैंक राइट ऑफ किए कर्ज को वसूलने के लिए कर्जदारों के खिलाफ कई तरह की कार्रवाई करती है। जैसे कि कर्जदारों के खिलाफ सिविल कोर्ट या डीआरटी (Debt Recovery Tribunals) में मुकदमा, इन्सोलवेंसी और बैंकरप्सी कोड 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) के तहत मुकदमा दर्ज, कर्जदारों की एनपीए संपत्ति को बेचना। 

वित्त मंत्री ने बताया कि इस दौरान एनपीए होने वाले कर्ज के लिए जिम्मेदार बैंक के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है। वित्त मंत्री के अनुसार, पिछले पांच वित्त वर्ष के दौरान बैंकों के एजीएम और उससे उपर के स्तर के  3312 अधिकारी और कर्मचारी के विरुद्ध लापरवाही के लिए मुकदमा चलाने और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के फैसले लिये गए। 

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Rajanish Kant बुधवार, 14 दिसंबर 2022
Home Loan (होम लोन) नहीं चुका पा रहे हैं तो करें ये काम

Home Loan (होम लोन) नहीं चुका पा रहे हैं तो करें ये काम

Rajanish Kant बुधवार, 25 जुलाई 2018
सरकार बैंकों के NPA से 'बैड बैंक' के जरिये नहीं, बल्कि इन तरीकों से निपटेगी!
(साभार- जागरण)

देश के सरकारी बैंकों के गले के फांस बने एनपीए (नॉन परफॉरमिंग एसेट्स यानी फंसे कर्ज) की समस्या को दूर करने के लिए एक समग्र नीति लाने का ऐलान किया गया है। यह समग्र नीति प्रोजेक्ट सशक्त के नाम से लागू होगी जिसे सुनील मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है। समिति की रिपोर्ट पर वित्त मंत्री पीयूष गोयल व वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की बैंकों के साथ सोमवार को चली बैठक के बाद देर रात प्रोजेक्ट  सशक्त लागू करने की घोषणा की गई। सरकार का कहना है कि पहली बार देश में एनपीए की समस्या से निबटने के लिए लंबी अवधि की योजना लागू की गई है।

सुनील मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर फैसला

वित्त मंत्री गोयल ने संवाददाता सम्मेलन में यह साफ किया गया कि समिति ने बैड बैंक (फंसे कर्जे को खरीदने के लिए गठित होने वाली एजेंसी) बनाने की कोई सिफारिश नहीं की है। हालांकि 500 करोड़ रुपये के फंसे कर्जे को एसेट्स मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) को बेचने का रास्ता साफ हो गया है। एएमसी बैंकों के 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के एनपीए खातों को खरीद सकेंगे। इसका फायदा यह होगा कि इन ग्राहकों से कर्ज वसूलने आदि का झंझट बैंकों पर नहीं रहेगा।

गोयल ने बताया कि एएमसी पूरी तरह से बाजार आधारित होंगे और देश में एक से ज्यादा एएमसी का गठन हो सकता है। इसमें देशी-विदेशी कंपनियां भी शामिल हो सकती हैं। यह प्रावधान किया जा रहा है कि एएमसी 60 दिनों के भीतर एनपीए का निपटारा करेंगे। गोयल का कहना है कि देश में 500 करोड़ रुपये से ज्यादा राशि के 200 बैंक खाते हैं। इनमें तकरीबन तीन लाख करोड़ रुपये की राशि फंसी हुई है।

यह फैसला भी किया गया है कि 50 करोड़ रुपये तक के फंसे कर्ज खातों के निपटारे के लिए हर बैंक में एक संचालन समिति का गठन किया जाएगा। इसका फायदा छोटी व मझोली कंपनियों को सबसे ज्यादा होगा कि उन पर ही 50 करोड़ रुपये तक का एनपीए है।

समिति 90 दिनों के भीतर इन सभी खातों के बारे में फैसला करेगी कि इन्हें और ज्यादा कर्ज देने की जरुरत है या इनके खाते को बंद करने की जरुरत है। या खाताधारक को कर्ज चुकाने के लिए और वक्त दिए जाने की जरुरत है। इस तरह के ज्यादातर कर्ज एक ही बैंक के तहत हैं, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि इनके समाधान का एक तरीका सामने आने के बाद जल्दी से छोटे एनपीए खातों का निपटान हो सकेगा।

50 से 500 करोड़ रुपये तक के एनपीए खाता के लिए यह फैसला किया गया है कि उनके बारे में लीड बैंक की अगुवाई में फंसे कर्जे के निपटारे का फैसला किया जाएगा। चूंकि इस श्रेणी के खाताधारकों को एक से ज्यादा बैंक कर्ज देते हैं इसलिए इन बैंकों के बीच एक खास समझौता होगा। यह समझौता इन एनपीए खातों को 180 दिनों के भीतर निपटाने का रास्ता साफ करेगा। लीड बैंक ही सबसे मुख्य भूमिका निभाएगा इसलिए दूसरे बैंकों से मंजूरी लेने की बाध्यता नहीं होगी।

गोयल ने बताया कि इस कदम से तीन लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्जे का निपटारा किया जा सकेगा। इसे लागू करने के लिए इन बैंकों की एक स्क्रीनिंग समिति भी गठित होगी जो यह देखेगी कि तय नियमों का पालन पारदर्शी तरीके से किया जा रहा है या नहीं।

वित्त मंत्रालय की तरफ से यह भी बताया गया है कि 500 करोड़ रुपये से ज्यादा राशि के अन्य एनपीए खाते जिनका निपटारा एएमसी के जरिए भी नहीं हो सकेगा उन्हें दिवालिया कानून के तहत ही सुलझाया जाएगा। साथ ही एसेट्स ट्रेडिंग प्लेटफार्म का तरीका भी फंसे कर्जे की समस्या को सुलझाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

सनद रहे कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों के फंसे कर्जे का स्तर बढ कर 12 लाख करोड़ रुपये की राशि को भी पार कर गई है। सरकार की तरफ से इन पर काबू करने की अभी तक की कोशिशों का कोई खास असर नहीं हुआ है।

Rajanish Kant मंगलवार, 3 जुलाई 2018
SCBs’ GNPA ratio may rise from 11.6% in March 2018 to 12.2% by March 2019:RBI
RBI releases June 2018 Financial Stability Report
The Reserve Bank of India today released the Financial Stability Report (FSR), 17th in the series.
The FSR reflects the overall assessment of the stability of India’s financial system and its resilience to risks emanating from global and domestic factors. The Report also discusses issues relating to developments in and regulation of the financial sector.
Overall assessment of systemic risks
Global and domestic macro-financial risks
  • Global growth outlook for 2018 remains positive despite some recent softness.
  • Spillover risk from advanced financial markets to emerging markets, however, has increased.
  • Tightening of liquidity conditions in the developed markets alongside expansionary US fiscal policy and a strong US dollar have started to adversely impact emerging market currencies, bonds and capital flows. Firming commodity prices, evolving geopolitical developments and rising protectionist sentiments pose added risks.
  • On the domestic front, economic growth is firming up. However, conditions that buttressed fiscal consolidation, moderation in inflation and a benign current account deficit over the last few years, are changing, thereby warranting caution.
  • In the domestic financial markets, structural shifts are altering the pattern of credit intermediation and impacting market interest rates. These developments, while a healthy sign of diversified financing of the economy, call for greater vigilance of the system as a whole in order to safeguard financial stability.
Financial Institutions: Performance and risks
  • The stress in the banking sector continues as gross non-performing advances (GNPA) ratio rises further.
  • Profitability of SCBs declined, partly reflecting increased provisioning. While this has added pressure on SCBs’ regulatory capital ratios, the provision coverage ratio has increased.
  • Credit growth of SCBs picked up during 2017-18 notwithstanding sluggish deposit growth.
  • Macro-stress tests indicate that under the baseline scenario of current macroeconomic outlook, SCBs’ GNPA ratio may rise from 11.6 per cent in March 2018 to 12.2 per cent by March 2019. The system-level capital to risk-weighted assets ratio (CRAR) may come down from 13.5 per cent to 12.8 per cent during the period; eleven public sector banks under prompt corrective action framework (PCA PSBs) may experience a worsening of their GNPA ratio from 21.0 per cent in March 2018 to 22.3 per cent, with six PCA PSBs likely experiencing capital shortfall relative to the required minimum CRAR of 9 per cent.
  • The capital augmentation plan announced by the government will go a long way in addressing the potential capital shortfall, while also playing a catalytic role in credit growth at healthier banks. In parallel, the Reserve Bank’s PCA framework, by preventing further capital erosion at weaker banks, is intended to help strengthen these banks to a point of resilience from where they can restart normal operations. In addition, governance reforms - If undertaken promptly and well - would not only improve the financial performance of the banking sector but also help reduce operational risks.
  • Overall, the regulatory and supervisory measures bode well for allocative efficiency and financial stability in the medium term even if there is some short-term pain in the process.
  • (Source: rbi)

Rajanish Kant मंगलवार, 26 जून 2018
इन बैंकों में भूलकर भी लोन लेने मत जाइएगा...!

इन बैंकों में भूलकर भी लोन लेने मत जाइएगा...!

Rajanish Kant सोमवार, 18 जून 2018
सरकारी बैंकों की चौंकाने वाली हकीकत! Bad Loan या Bad Bank!

सरकारी बैंकों की चौंकाने वाली हकीकत! Bad Loan या Bad Bank!

Rajanish Kant शुक्रवार, 1 जून 2018
सरकार एनपीए की समस्‍या से निपटने के लिए क्षेत्र विशेष से जुड़े उपाय कर रही है: वित्‍त मंत्री

वित्‍त मंत्री ने कहा, ‘गैर निष्‍पादित परिसंपत्तियों की वृद्धि दर चालू वित्‍त वर्ष की अंतिम तिमाही में धीमी हो गई है’

सरकार एनपीए की समस्‍या से निपटने के लिए क्षेत्र विशेष से जुड़े उपाय कर रही है: वित्‍त मंत्री
केन्‍द्रीय वित्‍त, रक्षा एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा है कि बैंकों की गैर निष्‍पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) से निपटना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। हालांकि, चालू वित्‍त वर्ष की अंतिम तिमाही में एनपीए यानी फंसे कर्जों में कमी देखने को मिली है। उन्‍होंने कहा कि एनपीए की मुख्‍य समस्‍या का वास्‍ता अत्‍यंत बड़ी कंपनियों से है। हालांकि, इस तरह की कंपनियों की संख्‍या कम है। एनपीए की समस्‍या मुख्‍यत: इस्‍पात, विद्युत, बुनियादी ढांचागत और कपड़ा क्षेत्रों में व्‍याप्‍त है। उन्‍होंने कहा कि जोरदार तेजी के दौर (2003-08) में इन औद्योगिक क्षेत्रों ने अपनी क्षमता काफी ज्‍यादा बढ़ा ली थी, लेकिन वैश्विक वित्‍तीय संकट और इसके बाद छाई सुस्‍ती से उन्‍हें जूझना पड़ा। उन्‍होंने कहा कि एनपीए विशेष कर बड़े कर्जों की समस्‍या से निपटने के लिए सरकार क्षेत्र विशेष उपाय कर रही है। वित्‍त मंत्री ने यह भी कहा कि इस्‍पात क्षेत्र में बेहतरी का रुख देखा जा रहा है, जबकि उनकी समस्‍याओं से निपटने के लिए बुनियादी ढांचागत, बिजली एवं कपड़ा क्षेत्रों में अनेक निर्णय लिए गए हैं। वित्‍त मंत्री श्री जेटली आज यहां वित्‍त मंत्रालय से संबद्ध सलाहकार समिति की पहली बैठक को संबोधित कर रहे थे।

वित्‍त मंत्री ने यह भी कहा कि विभिन्‍न बैंकों द्वारा सुपुर्द किये गये मामलों पर गौर करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने एक निगरानी समिति भी बनाई है। इस बारे में मिली प्रतिक्रिया और इसके प्रदर्शन को ध्‍यान में रखते हुए वित्‍त मंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार इस तरह की समितियों के बहुलीकरण पर विचार कर रही है। एक ‘बैड बैंक’ की स्‍थापना किये जाने के मसले पर केन्‍द्रीय वित्‍त मंत्री ने कहा कि अनेक संभावित विकल्‍प हैं और इस मसले पर सार्वजनिक मंचों पर बहस हो रही है।

आज की बैठक में भाग लेने वाले सलाहकार समिति के सदस्‍यों ने विशेष कर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के व्‍यापक एनपीए की समस्‍या से निपटने के लिए विभिन्‍न सुझाव दिए, जिससे बैंकों का समग्र प्रदर्शन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। एक सदस्‍य ने सुझाव दिया कि संबंधित राज्‍य सरकारों को फंसे कर्जों की नीलामी में भाग लेने की अनुमति दी जा सकती है। विभिन्‍न सदस्‍यों ने सुझाव देते हुए कहा चूंकि परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियां (एआरसी) निजी क्षेत्र में हैं और अनेक मामलों में उनका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है, इसलिए कड़े नियम-कायदों के जरिए एआरसी के परिचालनों पर करीबी निगाह रखी जानी चाहिए। इन सदस्‍यों ने स्‍वत: रूट के जरिए एआरसी में 100 फीसदी एफडीआई (प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश) की अनुमति देने के निर्णय को ध्‍यान में रखते हुए यह सुझाव दिया है। 
(Source: pib.nic.in)
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Rajanish Kant गुरुवार, 16 मार्च 2017