क्या सस्ता कर्ज ही इकोनॉमी को बढ़ाने का एकमात्र मर्ज है? सरकार सिर्फ RBI के भरोसे क्यों ? 3-4 अक्टूबर को क्या ब्याज घटेगा?

देश में इकोनॉमी की रफ्तार मोदी जी के 2014 में सत्ता संभालने के बाद सबसे कम दर्ज की गई है, महंगाई दर पांच महीने की उंचाई पर पहुंच गई है, कर्ज की प्रमुख दरें सात साल में सबसे कम है, इन सब तथ्यों के बीच 3 और 4 अक्टूबर को  RBI मौद्रिक नीति समिति की बैठक होने वाली है। 

सरकार ने रिजर्व बैंक से प्रमुख दरों में कटौती की मांग की है। सरकार का कहना है कि अभी भी प्रमुख दरों में कटौती की गुंजाइश है। लेकिन, सवाल है कि क्या एकमात्र कर्ज की दरों में कटौती से ही इकोनॉमी में जान फूंकी जा सकती है या फिर सरकार को भी इसके लिए कुछ करना होगा। 

इकोनॉमी और सस्ते कर्ज को लेकर एक बात और अगर सस्ते कर्ज से इकोनॉमी को सरपट दौड़ाई जा सकती थी तो आज जापान के अलावा कई यूरोपीय देशों में नकारात्मक ब्याज दर की व्यवस्था है, लेकिन वो देश इकोनॉमी में सुस्ती के दर्द से गुजर रहे हैं। 

तो, सरकार को इस बात भी गौर करना चाहिए कि इकोनॉमी के लिए सरकार की कोशिशें भी काफी मायने रखती है। 

> अब बात करते हैं कि 3.4 अक्टूबर की बैठक में क्या ब्याज घटेगा...आइये देखते हैं इस मामले में देश की इकोनॉमी से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े क्या संकेत देते हैं...। 

इससे पहले कि हम अपने देश के आंकड़ों की बात करें, आपको बता दूं कि आरबीआई मौद्रिक पॉलिसी की समीक्षा करते समय अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों की संभावित कदमों पर भी  विचार करेगा। अभी हाल ही में फेडरल रिजर्व ने बैठक की थी, जिसमें ब्याज दर तो स्थिर रखने पर सहमति बनी, लेकिन इस साल ब्याज दर में एक बढ़ोतरी की संभावना जताई गई है। तो, अमेरिका में ब्याज बढ़ना और अपने यहां ब्याज घटने का मतलब होगा कि विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकालकर अमेरिका में लगाएंगे। जो कि आरबीआई कभी नहीं चाहेगा। चलिए, अब बात करते हैं अपने यहां के प्रमुख आर्थिक आंकड़ों की....

इस वित्त वर्ष में अगस्त की बैठक में आरबीआई ने प्रमुख दरों में चौथाई परसेंट की कटौती की थी। इस कटौती के बाद देश में प्रमुख दर सात साल में सबसे कम हो गई है। 

अगस्त में खुदरा मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित महंगाई दर बढ़कर 3.36 परसेंट पर पहुंच गई,जो कि पांच महीने में सबसे अधिक है। जुलाई में यह 2.36 परसेंट थी। खाने के सामान खासकर सब्जियों के महंगे होने से महंगाई को हवा मिली।  

देश की ताजा जीडीपी ग्रोथ की बात करें, तो यह उम्मीद से काफी खराब रही है। इस वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 5.7 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह 7.9 प्रतिशत थी। नरेंद्र मोदी सरकार के 2014 में सत्ता में आने के बाद अप्रैल-जून तिमाही की जीडीपी ग्रोथ सबसे कम है। इस मामले में हम लगातार दो तिमाहियों से चीन से पिछड़ गए हैं। 

जानकार इसके लिए नोटबंदी और इसी साल एक जुलाई से लागू जीएसटी यानी वस्तु और सेवा कर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हालांकि, सरकार इकोनॉमी में जान फूंकने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। वरिष्ठ सरकारी अधिकारी इकोनॉमी में तेजी लाने, एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने, निवेश में गति लाने और नौकरियों के सृजन के लिए लगातार बैठकें कर रहे हैं। 


देखते हैं, सरकार की कोशिशें इकोनॉमी में तेजी लाने के लिए क्या रंग लाती है...? 

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