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आरबीआई के तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) रूपरेखा से इस साल बाहर आ सकते हैं 3-4 बैंक

वित्त मंत्रालय अगले छह से आठ महीनों में तीन से चार और बैंकों के कमजोर बैंकों की सूची से बाहर आने की उम्मीद कर रहा है। इसका कारण पूंजी डाले जाने के बाद बैंकों की वित्तीय सेहत में सुधार तथा फंसे कर्ज में कमी है।

सूत्रों ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंकों में 48,239 करोड़ रुपये की पूंजी डाले जाने से कारपोरेशन बैंक तथा इलाहबाद बैंक को अगले कुछ सप्ताह में तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) रूपरेखा से बाहर आने में मदद मिलेगा। 

हाल में पूंजी डाले जाने से कारपोरेशन बैंकों को सर्वाधिक 9,086 करोड़ रुपये की पूंजी प्राप्त होगी। उसके बाद इलाहाबाद बैंक का स्थान है जिसे 6,896 करोड़ रुपये की पूंजी प्राप्त होगी। इस पूंजी से इन बैंकों को साझा इक्विटी पूंजी अनुपात 7.375, शेयर पूंजी अनुपात (टायर-1) 8.875 प्रतिशत, जोखिम भारांश संपत्ति के अनुपात में पूंजी 10.875 प्रतिशत तथा शुद्ध एनपीए अनुपात की 6 प्रतिशत से नीचे रखने जैसी नियामकीय जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। 

आरबीआई अगले कुछ सप्ताह में इन दोनों बैंकों को पीसीए निगरानी से अलग करने के बारे में निर्णय कर सकता है जैसा कि दिसंबर में पूंजी डाले जाने के बाद बैंक आफ इंडिया, बैंक आफ महाराष्ट्र तथा ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स के मामले में पिछले महीने हुआ। 

तीन बैंकों को 31 जनवरी को सूची से हटाये जाने के बाद पीसीए दायरे में आने वाले बैंकों की संख्या 11 से कम होकर 8 पर आ गयी है।

सूत्रों ने कहा कि पुन: देना बैंक एक अप्रैल 2019 से सूची से हट जाएगा क्योंकि इस बैंक का विलय बैंक आफ बड़ौदा में हो रहा है।

आईडीबीआई बैंक की वित्तीय सेहत भी सुधर रही है और उसका शुद्ध फंसा कर्ज (एनपीए) भी कम हो रहा है। इससे यह भी पीसीए निगरानी से बाहर आ जाएगा। इस बैंक में अब एलआईसी की बहुलांश हिस्सेदारी है।

अगर बैंक अपनी वित्तीय स्थिति में निरंतर सुधार लाता है, ऐसी संभावना है कि आरबीआई सितंबर आंकड़े के बाद आईडीबीआई को इस सूची से बाहर कर देगा।

इसके अलावा सेंट्रल बैंक तथा यूको बैंक भी अपनी स्थिति में सुधार लाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक इस तरीके से चार और बैंकों से आरबीआई अगले 6 से आठ महीनों में पाबंदी हटा सकता है।


(सौ. पीटीआई भाषा)
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Rajanish Kant रविवार, 24 फ़रवरी 2019
Three Public Sector Banks Freed From PCA Framework
Prompt Corrective Action Framework
On a review of the performance of Public Sector Banks (PSBs) currently under the Prompt Corrective Action Framework (PCAF), it was noted that a few banks are not in breach of the PCA parameters as per their published results for the quarter ending December 2018, except Return on Assets (RoA). However, though the RoA continues to be negative, the same is reflected in the capital adequacy indicator. These banks have provided a written commitment that they would comply with the norms of minimum regulatory capital, Net NPA and leverage ratio on an ongoing basis and have apprised the Reserve Bank of India of the structural and systemic improvements that they have put in place which would help the banks in continuing to meet these commitments. Further, the Government has also assured that the capital requirements of these banks will be duly factored in while making bank-wise allocations during the current financial year.
Taking all the above into consideration, it has been decided that Bank of India and Bank of Maharashtra which meet the regulatory norms including Capital Conservation Buffer (CCB) and have Net NPAs of less than 6% as per third quarter results, are taken out of the PCA framework subject to certain conditions and continuous monitoring. In the case of Oriental Bank of Commerce, though the net NPA was 7.15%, as per the published results of third quarter, the Government has since infused sufficient capital and bank has brought the Net NPA to less than 6%. Hence, it has been decided to remove the restrictions placed on Oriental Bank of Commerce under PCA framework subject to certain conditions and close monitoring.
RBI will continuously monitor the performance of these banks under various parameters.

(सौ. आरबीआई)
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Rajanish Kant गुरुवार, 31 जनवरी 2019
रिजर्व बैंक निदेशक मंडल की 19 नवंबर की बैठक रह सकती है हंगामेदार

सरकार और रिजर्व बैंक के बीच जारी खींचतान के बीच 19 नवंबर को केंद्रीय बैंक के निदेशक मंडल की होने जा रही बैठक के हंगामेदार होने का अनुमान है। सूत्रों के अनुसार कुछ सदस्य बैठक में पूंजी रूपरेखा ढांचे, अधिशेष का प्रबंधन तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों (एमएसएमई) के लिये तरलता आदि से जुड़े मुद्दे उठा सकते हैं।


वित्त मंत्रालय द्वारा रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात के तहत चर्चा शुरू करने के बाद रिजर्व बैंक और सरकार के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। इस धारा का इस्तेमाल आज तक कभी नहीं किया गया है। इस धारा के तहत सरकार को इस बात का विशेषाधिकार मिलता है कि वह किसी मुद्दे पर रिजर्व बैंक के गवर्नर को निर्देश दे सके।


रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पिछले महीने एक भाषण में केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के बारे में बातें की थी। उन्होंने कहा था कि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता से किसी भी तरह का समझौता अर्थव्यवस्था के लिये विनाशकारी हो सकता है। 


सूत्रों के अनुसार, निदेशक मंडल की बैठक पूर्वनिर्धारित होती है तथा बैठक का एजेंडा भी काफी पहले तय कर लिया जाता है। हालांकि, निदेशक मंडल के सदस्य तय एजेंडे से इतर वाले मुद्दे भी उठा सकते हैं।


सूत्रों ने कहा कि सरकार के नामित निदेशक तथा कुछ स्वतंत्र निदेशक रिजर्व बैंक के पूंजी ढांचे तथा अंतरिम लाभांश के मुद्दे उठा सकते हैं।


हालांकि, रिजर्व बैंक की पूंजी रूपरेखा ढांचे में कोई भी बदलाव तभी संभव हो सकेगा जब रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 में संशोधन किया जाए।


इसके अलावा अन्य संभावित मुद्दों में पूंजी पर्याप्तता नियमों को विकसित देशों के समतुल्य किया जाना तथा बैंकों की त्वरित सुधारात्मक कारवाई रूपरेखा (पीसीए) में कुछ ढील देना भी शामिल है। सूत्रों के अनुसार एमएसएमई और एनबीएफसी को कर्ज वितरण बढ़ाने के उपायों के बारे में चर्चा हो सकती है। 


माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक पूंजी पर्याप्तता नियमों के मामले में पुराने और कड़े नियमों का पालन कर रहा है। ये नियम विकसित देशों के मुकाबले अधिक सख्त रखे गये हैं। परिणामस्वरूप बैंक दिये गये कर्ज के समक्ष ज्यादा जोखिम पूंजी कोष रख रहे हैं। सरकार का मानना है कि यदि रिजर्व बैंक नियमों को वैश्विक नियमों के अनुरूप रखते हैं तो बैंकों में ज्यादा पूंजी उपलब्ध होगी और उत्पादक क्षेत्रों को अधिक कर्ज दिया जा सकेगा। 


इस माह की शुरुआत में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन ने बैंकों के लिये पूंजी पर्याप्तता नियमों में ढील देने और उन्हें वैश्विक स्तर पर रखने की मांग को खारिज कर दिया था।


जहां तक रिजर्व बैंक के पूंजी रूपरेखा ढांचे की बात है सरकार चाहती है कि केन्द्रीय बैंक के पास आरक्षित पूंजी का उपयुक्त आकार होना चाहिये। रिजर्व बैंक के पास 9.59 लाख करोड़ रुपये का भारी आरक्षित कोष है। समझा जाता है कि सरकार इसमें से एक तिहाई राशि उसे आवंटित किये जाने की बात कर रही है। 


आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने हालांकि, कहा है कि सरकार को धन की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार चालू वित्त वर्ष के लिये राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में सही तरीके से आगे बढ़ रही है। 

RBI vs Govt: The 18 wise men tasked with supervision of the Mint Street
As an unprecedented fight plays out between the RBI and the government, it is the central bank's 18 board members who are being keenly watched for their next course of action -- they are not only central bankers and government officials but also business leaders, economists and activists.



The RBI board is scheduled to meet next on November 19 amid an ongoing tussle with the government on multiple fronts.

Going by the public utterances of the RBI and government officials so far, the contentious issues are how to manage the huge surplus the RBI has accumulated, how should it deal with errant lenders and borrowers amid a persisting bad loan crisis and what could be the 'public interest' for the government to dictate directions so that it is not seen as an attack on the central bank's autonomy.

As per the RBI website, its central board currently has 18 members, though the provision is that it can go up to 21.

The members include Governor Urjit Patel and his four deputies as 'full-time official directors', while the rest 13 have been nominated by the government, including two Finance Ministry officials -- Economic Affairs Secretary Subhash Chandra Garg and Financial Services Secretary Rajiv Kumar.

There are also Swadeshi ideologue Swaminathan Gurumurthy and cooperative banker Satish Marathe, nominated by the government as "part-time non-official directors".

The entire board is appointed by the government under the RBI Act, which mandates the central board with "general superintendence and direction of the Reserve Bank's affairs".

The government can nominate 10 'non-official' directors from various fields and two government officials. The four non-official directors are one each from the four regional boards of the RBI.

Besides Patel, the four official directors are N S Vishwanathan and Viral Acharya, both of whom have gone public with their direct or indirect criticism of any attempt to undermine the RBI's autonomy, as also B P Kanungo and M K Jain.

Patel became Governor in September 2016 after serving as Deputy Governor since January 2013. Previously, he had served at the International Monetary Fund (IMF) and was also on deputation from the IMF to the RBI during 1996-1997.

He was a Consultant to the Ministry of Finance from 1998 to 2001 and has a PhD in economics from Yale University, an M Phil from University of Oxford and a BSc from the University of London.

Acharya is a New York University Professor of Economics, while Kanungo and Vishwanathan are career central bankers. Jain was appointed as a Deputy Governor in June 2018 and previously headed IDBI Bank and Indian Bank, among other professional banking roles.

The business leaders on the RBI board include Tata group chief Natarajan Chandrasekaran, former Mahindra group veteran Bharat Narotam Doshi, Teamlease Services co-founder Manish Sabharwal and Sun Pharma chief Dilip Shanghvi.

The other members are Sudhir Mankad (retired IAS officer whose last assignment was as Gujarat government's Chief Secretary), Ashok Gulati (agricultural economist), Prasanna Mohanty (ex-IAS officer and economist), Sachin Chaturvedi of Delhi-based think-tank Research and Information System for Developing Countries (RIS) and Revathy Iyer (a former Deputy Comptroller and Auditor General).

In the past also, the RBI's board has had several business leaders such as Ratan Tata, Kumar Mangalam Birla, NR Narayana Murthy, Azim Premji, G M Rao, Y C Deveshwar and K P Singh.

Recently, the tenure of board member Nachiket Mor, who had previously been an executive director at ICICI Bank, was cut short -- nearly a year after he was re-nominated by the government in August 2017 for a second term of four years.

The central board members in the past also included Kiran S Karnik, Y H Malegam, Ela Bhatt, V Rajeev Gowda, Suresh Tendulkar and Suresh Neotia.

The RBI was established on April 1, 1935 and the appointment and tenure of the board members are governed by Section 8 of the RBI Act.

It is Section 7, which has been in news lately, that provides that the "Central Government may from time to time give such directions to the Bank as it may, after consultation with the Governor of the Bank, consider necessary in the public interest".

"Subject to any such directions, the general superintendence and direction of the affairs and business of the Bank shall be entrusted to a Central Board of Directors which may exercise all powers and do all acts and things which may be exercised or done by the Bank," Section 7 further says.

It also provides that "save as otherwise provided in regulations made by the Central Board, the Governor and in his absence the Deputy Governor nominated by him in his behalf, shall also have powers of general superintendence and direction of the affairs and the business of the Bank, and may exercise all powers and do all acts and things which may be exercised or done by the Bank".

Though originally privately owned, since nationalisation in 1949, the Reserve Bank is fully owned by the Government of India.

The RBI is mandated "to regulate the issue of bank notes and keeping of reserves with a view to securing monetary stability in India and generally to operate the currency and credit system of the country to its advantage".

It is also required "to have a modern monetary policy framework to meet the challenge of an increasingly complex economy, to maintain price stability while keeping in mind the objective of growth.

    (सौ. भाषा & PTI)

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    Rajanish Kant रविवार, 11 नवंबर 2018
    इन बैंकों में भूलकर भी लोन लेने मत जाइएगा...!

    इन बैंकों में भूलकर भी लोन लेने मत जाइएगा...!

    Rajanish Kant सोमवार, 18 जून 2018
    आरबीआई शीध्र सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) क्या है? बैंक और बैंक ग्राहकों के लिए इसके मायने
    आरबीआई यानि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया देश का केंद्रीय बैंक है, बैंकों का बैंक है, बैकिंग सिस्टम का रेगुलेटर है। बैंकों की वित्तीय सेहत पर नजर रखना आरबीआई के कई कामों में से एक काम है। गौरतलब है कि बैंकों का बढ़ता एनपीए (नहीं लौटने वाला कर्ज) देश की बैंकिंग सिस्टम, इकोनॉमी के लिए गंभीर समस्या बन गया है। बैंकों की वित्तीय सेहत भी इससे प्रभावित हो रही है। दरअसल, पीसीए का उद्देश्य बैंकों को अपनी वित्तीय स्थिति को पुनःस्थापित करने के लिए समयबद्ध तरीके में सुधारात्मक उपाय, जिसमें रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित उपाय शामिल हैं, की सुविधा प्रदान करना है। यह ढांचा रिज़र्व बैंक को एक अवसर प्रदान करता है कि वह उन क्षेत्रों में अधिक निकटता से प्रबंधन के साथ मिलकर ऐसे बैंकों पर ध्यानकेंद्रित कर सके। इस प्रकार पीसीए ढांचे का प्रयोजन बैंकों को कतिपय जोखिमभरी गतिविधियां करने से बचने और पूंजी संरक्षण पर ध्यानकेंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करना है जिससे कि उनके तुलन पत्र (Balance Sheet)  मजबूत बन सकें।

    रिज़र्व बैंक अपने पर्यवेक्षी ढांचे के अंतर्गत बैंकों की अच्छी वित्तीय स्थिति बनाए रखने के लिए विभिन्न उपायों/साधनों का उपयोग करता है। पीसीए ढांचा ऐसे पर्यवेक्षी  साधनों में एक है जिसमें शुरुआती समय में चेतावनी कार्रवाई के रूप में बैंकों के कतिपय कार्यनिष्पादन संकेतकों की निगरानी करना शामिल है और इसे पूंजी 
    (Capital), आस्ति गुणवत्ता (Asset Quality) आदि से संबंधित थ्रेशोल्ड का उल्लंघन होने पर शुरू किया जाता है। इसके तहत एक बात ध्यान देने वाली है कि पीसीए ढांचे का उद्देश्य सामान्य जनता के लिए बैंकों के सामान्य परिचालनों को प्रतिबंधित करना नहीं है।  रिज़र्व बैंक ने स्पष्ट कर दिया है।  रिज़र्व बैंक ने जोर देते हुए कहा है कि पीसीए ढांचा दिसंबर 2002 से परिचालन में है  और 13 अप्रैल 2017 को जारी दिशानिर्देश केवल पहले के ढांचे का संशोधित संस्करण है। 
    >बैंकों के लिए संशोधित त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) फ्रेमवर्क
    कृपया त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई योजना (PCA) विषय पर भारतीय रिज़र्व बैंक का 21 दिसंबर 2002 का परिपत्र सं.डीबीएस.केंका.पीपी.बीसी.सं.9/11.01.005/2002-2003 और 15 जून 2004 का डीबीएस. केंका. पीपी.बीसी.सं.13/11.01.005/2003-04 देखें।
    2. बैंकों के लिए मौजूदा त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क (PCA) की अब समीक्षा की गई है और उसे संशोधित किया गया है। इसकी मुख्य विशेषताएँ अनुबंध में दी गई हैं।
    3. 31 मार्च 2017 को समाप्त वर्ष के लिए बैंकों के वित्तीय परिणामों के आधार पर संशोधित त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क (PCA) के उपबंध 1 अप्रैल 2017 से लागू होंगे। तीन वर्ष के बाद इस फ्रेमवर्क की समीक्षा की जाएगी।
    4. त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क (PCA) के होते हुए भी, यदि रिज़र्व बैंक उचित समझेगा तो उक्त फ्रेमवर्क के अतिरिक्त वह अन्य सुधारात्मक कार्रवाई भी कर सकेगा।
    5. इस परिपत्र की विषयवस्तु बैंक के निदेशक बोर्ड के ध्यान में लाई जाए।

    बैंकों के लिए संशोधित त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) फ्रेमवर्क की प्रमुख विशेषताएँ
    क. संशोधित फ्रेमवर्क में पूंजी, परिसंपत्ति गुणवत्ता और लाभप्रदता निगरानी के प्रमुख क्षेत्र बने रहेंगे।
    ख. पूंजी, परिसंपत्ति गुणवत्ता और लाभप्रदता के लिए जिन इंडिकटरों को ट्रैक किया जाएगा वे क्रमशः सीआरएआर / कॉमन ईक्विटी टियर I अनुपात1, नेट एनपीए अनुपात2 और परिसंपत्तियों पर प्रतिलाभ (रिटर्न ऑन एसेट्स)3 होंगे।
    ग. पीसीए फ्रेमवर्क के भाग के रूप में अतिरिक्त निगरानी के तौर पर लीवरेज की निगरानी की जाएगी।
    घ. जोखिम संबंधी किसी प्रारम्भिक (threshold) सीमा के उल्लंघन (जैसा कि नीचे उल्लेख है) पर त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई योजना/ फ्रेमवर्क को लागू किया जा सकेगा।
    पीसीए मैट्रिक्स (PCA matrix) - क्षेत्र, इंडिकेटर और जोखिम संबंधी प्रारम्भिक (threshold) सीमाएं
    इंडिकेटरजोखिम संबंधी प्रारम्भिक सीमा 1 (Threshold 1)जोखिम संबंधी प्रारम्भिक सीमा 2 (Threshold 2)जोखिम संबंधी प्रारम्भिक सीमा 3 (Threshold 3)
    क्षेत्र
    पूंजी
    (सीआरएआर अथवा सीईटी 1 अनुपात का भंग होना पीसीए को ट्रिगर कर सकता है)
    सीआरएआर - जोखिम परिसंपत्ति अनुपातगत न्यूनतम विनियामी पूंजी निर्धारण + लागू पूंजी कंजर्वेशन बफर (CCB)
    भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 10.25% मौजूदा न्यूनतम निर्धारण (31 मार्च 2017 को न्यूनतम कुल पूंजी 9% + CCB का 1.25%*)
    और/अथवा
    CET 1(min) + लागू पूंजी कंजर्वेशन बफर (CCB) के लिए विनियामी पूर्व निर्धारित ट्रिगर
    भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मौजूदा 6.75% न्यूनतम निर्धारण (31 मार्च 2017 को 5.5%+ 1.25%* पूंजी कंजर्वेशन बफर) या तो सीआरएआर अथवा सीईटी 1 अनुपात के भंग होने पर पीसीए ट्रिगर हो सकता है।
    इंडिकेटर से नीचे 250 bps तक


    <10.25% किन्तु >=7.75%



    इंडिकेटर से नीचे 162.50 bps तक


    <6.75% किन्तु >= 5.125%
    इंडिकेटर से नीचे 250 bps से अधिक किन्तु 400 bps से तक


    <7.75% किन्तु >=6.25%


    इंडिकेटर से नीचे 162.50 bps से अधिक किन्तु 312.50 bps तक

    <5.125% किन्तु >=3.625%
    -


    -


    इंडिकेटर से नीचे 312.50 bps से अधिक

    <3.625%
    परिसंपत्ति गुणवत्तानिवल अनर्जक अग्रिम (एनपीए) अनुपात>=6.0% किन्तु <9.0%>=9.0% किन्तु < 12.0%>=12.0%
    लाभप्रदतापरिसंपत्तियों पर प्रतिलाभ (ROA)लगातार दो वर्षों तक परिसंपत्तियों पर नकारात्मक प्रतिलाभलगातार तीन वर्षों तक परिसंपत्तियों पर नकारात्मक प्रतिलाभलगातार चार वर्षों तक परिसंपत्तियों पर नकारात्मक प्रतिलाभ
    लीवरेजटियर 1 लीवरेज अनुपात4<=4.0% किन्तु > = 3.5%
    (टियर 1 पूंजी के 25 गुने से अधिक लीवरेज)
    < 3.5% (टियर 1 पूंजी के 28.6 गुने से अधिक लीवरेज)
    *31 मार्च 2018 और 31 मार्च 2019 को क्रमशः पूंजी कंजर्वेशन बफर 1.875% और 2.5% होगा।
    I) सीईटी 1 के तहत ‘प्रारम्भिक (threshold) जोखिम-3’ के भंग होने पर संबन्धित बैंक समामेलन, पुनर्निर्माण, समापन आदि उपायों के जरिए समाधान का आवेदक हो सकेगा।
    II) अपने जमाकर्ताओं के प्रति प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में किसी बैंक द्वारा चूक होने के मामले में, पीसीए मैट्रिक्स को संदर्भित किए बिना संभावित समाधान की प्रक्रिया का आश्रय लिया सकेगा।
    ड. पहचाने गए इंडिकेटरों के तहत प्रारम्भिक (threshold) जोखिम सीमा के उल्लंघन पर, पीसीए फ्रेमवर्क भारत में परिचालनकर्ता सभी बैंकों पर निरपवाद रूप से लागू होगा जिनमें छोटे बैंक और शाखाओं या सहायक कंपनियों के जरिए परिचालन करने वाले विदेशी बैंक भी शामिल हैं।
    च. लेखा परीक्षित वार्षिक वित्तीय परिणामों/निष्कर्षों और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किए गए पर्यवेक्षी मूल्यांकन के आधार पर किसी बैंक को पीसीए फ्रेमवर्क के तहत रखा जा सकेगा। हालांकि, परिस्थितिजन्य मामले में, रिजर्व बैंक एक वर्ष के दौरान भी किसी बैंक पर पीसीए (एक प्रारम्भिक सीमा से दूसरी प्रारम्भिक सीमा में अंतरण सहित) को लागू कर सकता है।
    अनिवार्य और स्वविवेकाधीन कार्रवाई (MDA)
    निर्धारणअनिवार्य कार्रवाईस्वविवेकाधीन कार्रवाई
    जोखिम Threshold 1लाभांश वितरण/लाभ के विप्रेषण पर प्रतिबंध
    विदेशी बैंकों के मामले में प्रवर्तक/ मालिक/मूल कंपनी पूंजी (भारत) लाएं
    सामान्य मेन्यू
    विशेष पर्यवेक्षी विचार-विमर्श
    रणनीति से संबंधित
    नियंत्रण से संबंधित
    पूंजी से संबंधित
    ऋण जोखिम से संबंधित
    बाजार जोखिम से संबंधित
    मानव संसाधन से संबंधित
    लाभप्रदता से संबंधित
    परिचालन से संबंधित
    अन्य मामले
    जोखिम Threshold 2थ्रेसहोल्ड 1 की अनिवार्य कार्रवाई के अलावा,
    घरेलू/विदेश में शाखा विस्तार पर प्रतिबंध
    कवरेज काल (regime) के दौरान उच्चतर प्रावधान
    जोखिम Threshold 3थ्रेसहोल्ड 1 की अनिवार्य कार्रवाई के अलावा,
    घरेलू/विदेश में शाखा विस्तार पर प्रतिबंध
    यथा लागू प्रबंधन को प्रतिपूर्ति और निदेशकों की फीस पर प्रतिबंध/रोक
    स्वविवेकाधीन सुधारात्मक कार्रवाईयाँ के चयन के लिए सामान्य मेन्यू
    1. विशेष पर्यवेक्षी विचार विमर्श
    • त्रैमासिक या अन्य निर्धारित अंतराल पर विशेष पर्यवेक्षी निगरानी बैठकें (एसएसएमएम)।
    • बैंक का विशेष निरीक्षण / लक्षित (targeted) संवीक्षा।
    • बैंक की विशेष लेखा परीक्षा।
    2. रणनीति से संबंधित कार्रवाई
    भारतीय रिज़र्व बैंक के बोर्ड को सूचित कर सकता है कि:
    • पर्यवेक्षक द्वारा विधिवत अनुमोदित वसूली योजना को (बैंक) प्रारम्भ करे |
    • व्यापार (business) मॉडल के स्थायित्व, व्यापारिक स्वरूपों और गतिविधियों की लाभप्रदता, मध्यम और दीर्घकालिक (अर्थ) सक्षमता, बैलेंस शीट अनुमानों, आदि के संदर्भ में व्यापार मॉडल की विस्तृत समीक्षा करे।
    • तात्कालिक चिंताओं को दूर करने के लिए उन पर ध्यान केंद्रित कर अल्पकालिक रणनीति की समीक्षा करे।
    • मध्यम अवधि की कारोबारी योजनाओं की समीक्षा करे, साध्य लक्ष्य निर्धारित करे और प्रगति तथा उपलब्धि के लिए ठोस लक्ष्य निर्धारित करे।
    • कारोबारी वृद्धि / संकुचन की संभावना तलाशने के लिए सभी व्यावसायिक स्वरूपों की समीक्षा करे।
    • जैसा उपयुक्त हो, व्यवसाय प्रक्रिया की पुनर्रचना (reengineering) करे।
    • जैसा उपयुक्त हो, परिचालन का पुनर्गठन करे।
    3. नियंत्रण संबंधी कार्रवाई :
    • अपेक्षानुसार भारतीय रिज़र्व बैंक विभिन्न पहलुओं पर बैंक के बोर्ड के साथ सक्रिय रूप में जुड़े।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक मालिकों (सरकार / प्रोमोटरों / विदेशी बैंक शाखा की पैरेंट एंटिटी) को नए प्रबंधन/ बोर्ड को लाने की सिफारिश करे।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 36 एए के तहत प्रबंधकीय व्यक्ति को हटाना।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 36 एसीए के तहत बोर्ड का अधिक्रमण करना/ अथवा उपयुक्त समझने पर बोर्ड को निलंबित करने हेतु सिफारिश करना ।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक विनियामी दिशानिर्देशों के तहत राशि वापस लाने (claw back) तथा गलत शर्तों (malus clause) को हटाने या बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत अन्य प्रतिबंध अथवा शर्तों को लागू करने की अपेक्षा कर सकता है।
    • निदेशकों या प्रबंधन को मुआवजे पर, यथा लागू हो सकने योग्य, प्रतिबंध लागू कर सकता है।
    4. पूंजी संबंधी कार्रवाई
    • पूंजी जुटाने की आयोजना की बोर्ड स्तर पर विस्तृत समीक्षा करना।
    • अतिरिक्त पूंजी जुटाने के लिए योजनाएं और प्रस्ताव प्रस्तुत करना।
    • बैंक से अपेक्षा करना कि वह मुनाफे को जमा करने के जरिए आरक्षित (reserve) राशि को मजबूत करे।
    • सहायक / सहयोगी कंपनियों (associates) में निवेश पर प्रतिबंध।
    • पूंजी के संरक्षण के लिए उच्च जोखिम-भारित परिसंपत्तियों के विस्तार पर प्रतिबंध।
    • पूंजी के संरक्षण करने के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्र (में निवेश/ऋण देने) से परहेज।
    • सहायक कंपनियों और समूह की अन्य कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाने पर प्रतिबंध।
    5. क्रेडिट जोखिम से संबंधित कार्रवाई
    • एनपीए के स्टॉक में कमी के लिए समयबद्ध योजना और प्रतिबद्धताएं तैयार करना।
    • नये एनपीए बनने को रोकने के लिए योजना तैयार करना और प्रतिबद्धता बढ़ाना ।
    • ऋण समीक्षा तंत्र को मजबूत बनाना।
    • कतिपय रेटिंग ग्रेड से नीचे ग्रेड वाले उधारकर्ताओं के लिए क्रेडिट देने पर प्रतिबंध / में कमी करना।
    • जोखिम परिसंपत्तियों में कमी।
    • बिना रेंटिंग वाले उधारकर्ताओं को क्रेडिट देने पर प्रतिबंध / में कमी करना।
    • बेजमानती जोखिमों में कटौती करना।
    • चिन्हित क्षेत्रों, उद्योगों या उधारकर्ताओं में ऋण संकेद्रण में कमी करना ।
    • परिसंपत्ति की बिक्री ।
    • क्षेत्रों की पहचान (भौगोलिक क्षेत्रवार, उद्योग खंडवार, उधारकर्ता वार, आदि) के जरिए परिसंपत्ति की वसूली के लिए कार्रवाई कार्य योजना तैयार करना और समर्पित वसूली टास्क फोर्स, अदालत आदि के जरिए वसूली सुनिश्चित करना ।
    6. मार्केट जोखिम से संबंधित कार्रवाई
    • अंतर-बैंक बाजार से उधार लेने पर प्रतिबंध/ में कमी।
    • थोक जमा राशियों / महंगी जमा / जमा प्रमाणपत्र तक पहुँच/के नवीकरण पर प्रतिबंध लगाना।
    • डेरिवेटिव गतिविधियों, डेरिवेटिव जो संपार्श्विक प्रतिभूतियों से प्रतिस्थापन की अनुमति देते हैं, पर प्रतिबंध लगाना।
    • धारित संपार्श्विक प्रतिभूतियों के अतिरिक्त रखरखाव पर प्रतिबंध जो कि प्रतिपक्ष द्वारा किसी भी समय संविदा के आधार पर वापस ली जा सकती हैं ।
    7. मानव संसाधन से संबंधित कार्रवाई
    • कर्मचारियों की संख्या पर प्रतिबंध।
    • मौजूदा स्टाफ के विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकताओं की समीक्षा।
    8. लाभप्रदता से संबंधित कार्रवाई
    • बोर्ड द्वारा अनुमोदित सीमाओं के भीतर तकनीकी उन्नयन के अलावा पूंजीगत व्यय पर प्रतिबंध।
    9. परिचालन से संबंधित कार्रवाई
    • घरेलू या विदेशी शाखा विस्तार योजना पर प्रतिबंध।
    • विदेशी शाखाओं / सहायक कंपनियों / अन्य संस्थाओं में कारोबारी कमी।
    • व्यापार के नये क्षेत्रों /प्रकारों में प्रवेश पर प्रतिबंध।
    • गैर-निधि आधारित व्यवसाय में कटौती के जरिये लीवरेज में कटौती।
    • जोखिमग्रस्त हो सकने वाली परिसंपत्तियों में कमी।
    • गैर-ऋण परिसंपत्ति निर्माण पर प्रतिबंध।
    • यथा विनिर्दिष्ट व्यवसाय करने पर प्रतिबंध।
    कोई भी अन्य विशेष कार्रवाई, जो बैंक की विशेष परिस्थितियों के मद्देनजर भारतीय रिज़र्व बैंक करना उपयुक्त समझता हो।

    1 सीईटी 1 अनुपात – जैसा कि भारतीय रिज़र्व बैंक के बासेल III के दिशानिर्देशों में परिभाषित है कुल जोखिम भारित परिसंपत्तियों की तुलना में, विनियामी समायोजन को घटाकर, मूल (core) ईक्विटी पूंजी अनुपात ।
    2 एनएनपीए अनुपात – निवल अग्रिम से निवल एनपीए का प्रतिशत
    आरओए – औसत कुल परिसंपत्तियों से कर घटाने के बाद लाभ का प्रतिशत
    टियर 1 लीवरेज अनुपात – लीवरेज अनुपात पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों में यथा परिभाषित जोखिम उपायों की तुलना में पूंजी उपायों का प्रतिशत


    (Source: rbi.org.in)




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    ((निवेश: 5 गलतियों से बचें, मालामाल बनें Investment: Save from doing 5 mistakes 



    Rajanish Kant रविवार, 18 जून 2017