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सरसों के तेल को छोड़कर अन्य सभी खाद्य तेलों के थोक में निर्यात की मंजूरी
मंत्रिमंडल ने सरसों के तेल को छोड़कर अन्य सभी खाद्य तेलों के थोक में निर्यात की अनुमति दी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने सरसों के तेल को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के खाद्य तेलों के बड़ी मात्रा में निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी  है। सरसों के तेल के लिए 900 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के न्यूनतम मूल्य पर पांच किलोग्राम के उपभोक्ता पैक में निर्यात की अनुमति जारी रहेगी।
आर्थिक मामलों की समिति ने खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभागके सचिव की अध्यक्षता वाली समिति को अधिकार सम्पन्न बनाने कीभी स्वीकृति दे दी है। इस समिति में वाणिज्य, कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण, राजस्व, उपभोक्ता मामले तथा विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के सचिव शामिल हैं।समिति को घरेलू उत्पादों और मांग, घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय कीमतों तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की मात्रा के आधार पर विभिन्न प्रकार के खाद्य तेलों की आयात-निर्यात नीति की समीक्षा करने तथा उन पर मात्रात्मक प्रतिबंध, पूर्व पंजीकरण, न्यूनतम निर्यात मूल्य तय करने और आयात शुल्क में बदलाव के संबंध में आवश्यक उपाय करने का अधिकार होगा।
खाद्य तेलों का उपभोक्ता पैक में निर्यात करने तथा समय-समय पर उनका न्यूनतम निर्यात मूल्य तय करने का वाणिज्य सचिव की अध्यक्षता वाली अंतर-मंत्रालय समिति का अधिकार समाप्त कर दिया गया है।
प्रभावः
सभी तरह के खाद्य तेलों के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटाने से खाद्य तेलों के अतिरिक्त विपणन के अवसर उपलब्ध होंगे। इससे किसानों को तिलहनों से ज्यादा वसूली हो सकेगी, जिससे वे लाभान्वित होंगे। खाद्य तेलों के निर्यात की अनुमति मिलने से मंद पड़े देश के खाद्य तेल उद्योग की क्षमता में वृद्धि होगी। इससे निर्यात प्रतिबंध और कई तरह की रियायतों  की वजह से उत्पन्न हुई दुविधा की स्थिति खत्म हो सकेगी और कारोबारी सहूलियत का मार्ग प्रशस्त होगा।
पृष्ठभूमिः
पिछले दो वर्षों की तुलना में 2016-17 के दौरान देश में तिलहन उत्पादन में भारी वृद्धि देखी गई है। ऐसी संभावना है कि 2017-18 में भी उत्पादन वृद्धि का यह स्तर बना रहेगा। अभी तक केवल कुछ खाद्य तेलों को ही बड़ी मात्रा में निर्यात की अनुमति है। अन्य खाद्य तेलों का निर्यात पांच किलोग्राम के उपभोक्ता पैक में न्यूनतम निर्यात मूल्य पर में ही किया जा सकता है। देश में खाद्य तेलों के बढ़ते उत्पादन को सहारा देने तथा इन तेलों के विपणन के लिए अतिरिक्त संभावनाएं तलाशने के लिए सरसों के तेल को छोड़कर अन्य खाद्य तेलों के बड़े पैमाने पर निर्यात की अनुमति दिया जाना जरूरी हो गया था। सरसों के तेल का भारत में बड़े पैमाने पर उपभोग किया जाता है।
स्रोत-पीआईबी

Rajanish Kant गुरुवार, 29 मार्च 2018
2017 में एग्री कमोडिटीज का कैसा रहेगा प्रदर्शन; क्या कहते हैं फंडामेंटल सितारे
साल 2016 एग्री कमोडिटीज मसलन, सोयाबीन, सरसों, कपास, जीरा, इलायची, हल्दी, ग्वारगम एवं ग्वारसीड, चीनी बगैरह के लिए मिला-जुला रहा। 

इलायची, क्रूड पाम ऑयल और जीरा सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाली कमोडिटीज में शामिल रहे जबकि हल्दी, सोयाबीन के साथ-साथ ग्वारगम और ग्वारसीड सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली कमोडिटीज रहे। पिछले साल तो खट्टे-मीठे अनुभव के साथ बीत गया, लेकिन एग्री कमोडिटी निवेशक का पूरा ध्यान अब इस बात पर होगा कि इस साल यानी 2017 में एग्री कमोडिटीज के फंडामेंटल सितारे क्या कहते हैं....
>सोयाबीन: अधिक उपलब्धता का अनुमान, जिससे कीमतों पर दबाव मुमकिन
-अनुकूल मौसम से इस सोयाबीन साल (अगस्त-जुलाई 2016-17) के दौरान देश में प्रति हेक्टेयर सोयाबीन का करीब दोगुना  उत्पादन होने की संभावना है। पिछले सोयाबीन साल में सोयाबीन का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 626 किलोग्राम था जिसे इस सोयाबीन साल में बढ़कर 1,047 प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान है। 

-अगर अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे की बात करें, तो इस साल 338 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन होने की संभावना है जबकि पिछले साल ये आंकड़ा 313 मिलियन टन था। यानी पिछले साल के मुकाबले इस साल सोयाबीन का उत्पादन 8 % अधिक रहने वाला है। इसके अलावा, सोयाबीन का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले देशों अमेरिका, ब्राजील और चीन में भी सोयाबीन का उत्पादन इस साल बढ़ने का अनुमान है, इसलिए मांग और आपूर्ति के स्तर पर कोई खास दिक्कत आने की संभावना  नहीं क बराबर है। सिर्फ अर्जेंटीना में उत्पादन कुछ कम हो सकता है। 

-SOPA यानी सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, 2017 की पहली छमाही में देश में 114 लाख टन से अधिक सोयाबीन रहने का अनुमान है। घरेलू सोयाबीन के रिकॉर्ड उपलब्धता के अलावा विदेशी सोयाबीन की मात्रा भी इस दौरान अच्छी-खासी रहने वाली है, जो कि सोयाबीन की कीमत पर दबाव बना सकती है। भारत सरकार के वाणिज्य विभाग की मानें, तो वित्त वर्ष 2016-17 में अप्रैल-सितंबर के दौरान 40,323 टन सोयाबीन का आयात हो चुका है जबकि  इससे पहले के वित्त वर्ष की इसी अवधि में 20,557 टन सोयाबीन का आयात हुआ था। आयात मुख्य तौर पर इथियोपिया से ज्यादा हुआ है। 

-विदेशी बाजारों में सोयाबीन की कीमत में तेजी का रुझान बना हुआ है। इसकी मुख्य वजह है चीन के अलावा सोयाबीन के  दो प्रमुख उत्पादक देशों अर्जेंटीना और ब्राजील से काफी मात्रा में मांग आना। दक्षिण अफ्रीका में सोयाबीन की नई फसल  (अप्रैल-मई) आने तक विदेशी बाजारों में इसकी कीमत में उतार-चढ़ाव जारी रहेगा। ला नीनी और खराब मौसम कभी भी  फसल के लिए संकट साबित हो सकते हैं।  

-घरेलू बाजार की बात करें, सोयाबीन का पर्याप्त स्टॉक है, लेकिन इसकी कीमत सोयामील के एक्सपोर्ट की मात्रा और क्रूड सोया ऑयल की आयात निर्भरता पर निर्भर करती है। आपको बता दें कि भारत क्रूड सोया ऑयल का सबसे बड़ाआयातक है।

-एक बात और बता दूं कि चीन सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक है। कुल आयात का 60% चीन अकेले करता है। 2016-17 में चीन की तरफ से सोयाबीन की मांग पिछले साल के मुकाबले 3.3% या 2.8 मिलियन टन बढ़कर 86 मिलियन टन रहने का अनुमान है।  

>सरसों:
-घरेलू स्तर पर बात करें तो  सरसों उत्पादन करने वाले सभी राज्यों में बुआई का रकबा बढ़ा है। सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 2014-15 के मुकाबले 2016-17 में 600 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाकर 3700 रुपए किए जाने से किसानों का रुझान इसकी तरफ बढ़ा है। सरसों की बुआई आखिरी चरण में है और अगले दो महीना इसके लिए काफी महत्वपूर्ण है। अगर इस दौरान मौसम अनुकूल रहा तो सरसों की बंपर पैदावार होगी।  अगर ऐसा होता है तो सरसों की कीमत भी काबू में रहेगी। 

-2016-17 में सरसों तेल का आयात कम रहने का अनुमान है। इसका मतलब हुआ कि घरेलू सरसों की मांग ज्यादा रहेगी। लेकिन, यह भी सरसों की कीमत को बढ़ाने में शायद ही मददगार साबित हो, क्योंकि भारतीय सरसों खली की निर्यात मांग सुस्त रहने वाली है। भारत में सरसों तेल का आयात तभी होता है जब वैश्विक बाजारों में इसकी कीमत कम हो, सरसों खली का निर्यात हो, इंपोर्ट ड्यूटी कम हो और भारी घरेलू मांग हो। 

-2016-17 में भारत सिर्फ 4 लाख टन सरसों तेल का आयात कर सकता है जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 6.7 लाख टन था। यूएसडीए यानी यूनाइटेड स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के मुताबिक, भारत में इस साल 22 लाख टन सरसों का  उत्पादन होगा जबकि खपत 25.4 लाख टन रहने की संभावना है। भारत मांग और आपूर्ति की इस कमी को कनाडा और  यूरोपियन यूनियन से रेपसीड का आयात कर पूरा करता है लेकिन इस साल सरसों का अच्छा उत्पादन होने की वजह से आयात काफी कम रहने वाला है। 

-सरसों की कीमत आने वाले दिनों में बहुत कुछ मौसम और सरसों खली की एक्सपोर्ट मांग पर निर्भर करती है। 

>कॉटन:
-इस साल कॉटन का उत्पादन पिछले साल के जितना ही रहने वाला है। हालांकि, इस कॉटन सीजन में इसकी कीमत में कुछ तेजी देखी गई है। दरअसल, यह नोटबंदी की वजह से उपजे नकदी संकट का परिणाम है। इस कॉटन सीजन में बुआई के समय में कीमत में कमी के बावजूद 2014 और 2015 के कॉटन सीजन के मुकाबले कीमत अधिक रही है। 

-कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने 2016-17 के कॉटन सीजन (अगस्त-जुलाई) में उत्पादन अनुमान पहले के अनुमान 339 लाख बेल्स (1 बेल= 170 किलोग्राम) से बढ़ाकर 346 लाख बेल्स कर दिया है। इसके अलावा 45 लाख बेल्स का स्टॉक अभी  बचा हुआ है, जबकि 17 लाख बेल्स कॉटन का आयात होने की संभावना है।  यानी 408 लाख बेल्स कॉटन की आपूर्ति भारतीय बाजार में इस कॉटन साल में होने की उम्मीद है. जो कि पिछले कॉटन साल के मुकाबले 4.4% यानी 19 लाख बेल्स कम है। 

-अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो मौसम की स्थिति सुधरने से कॉटन का उत्पादन इस साल पिछले साल के मुकाबले 8% बढ़कर  22.7 लाख टन रहने का अनुमान है। हालांकि, कॉटन के वैश्विक रकबा में 4% की कमी आई है लेकिन प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन होन का अनुमान है। इस साल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 775 किलोग्राम रहने की संभावना है जो कि 5 साल के औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन से ज्यादा है। 

-इस दौरान कॉटन की वैश्विक खपत में मामूली बढ़ोतरी का अनुमान है। पिछले साल कॉटन की वैश्विक खपत 24.2 मिलियन टन थी जबकि इस साल इसे बढ़कर 24.4 मिलियन टन होने का अनुमान है। 

-इसलिए, घरेलू बाजार में अगर कॉटन की नई फसल आती है तो इसकी कीमत में कमी आने के भरपूर आसार हैं। 

-इसके अलावा, कॉटन के आयात की संभावना ज्यादा है जबकि निर्यात की कम, इससे कॉटन की कीमत पर दबाव पड़  सकता है। 

>जीरा (Cumin):
-गुजरात और राजस्थान सबसे ज्यादा जीरा उत्पादन करने वाले राज्य हैं। कुल घरेलू जीरा उत्पादन का 80% उत्पादन इन्हीं दो राज्यों में होता है। इसलिए 2016-17 में जीरे का कितना उत्पादन होगा, यह बहुत कुछ इन दो राज्यों में जीरे का रकबा पर निर्भर करता है।  कारोबारियों की मानें तो इस साल जीरे का उत्पादन पिछले साल जितना या उससे कुछ ही अधिक रह सकता है। 

-जीरे की बुआई की प्रगति को देखते हुए आंकड़े बता रहे हैं कि गुजरात में पिछले साल के मुकाबले इस साल अब तक जीरे की बुआई पिछड़ी हुई है। 26 दिसंबर तक गुजरात के किसान 2,67,100 हेक्टेयर में जीरे की बुआई कर चुके थे जबकि 2015-16 की इसी अवधि के दौरान यह रकबा 2,68,300 हेक्टेयर था।

-डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, को-ऑपरेशन और फार्मर वेल्फेयर (हॉर्टिकल्चर डिवीजन) की मानें तो, 2015-16 में देश में सबसे  जीरे का अब तक का सबसे ज्यादा उत्पादन हुआ। बावजूद इसने करीब 25%  का रिटर्न दिया। अच्छी क्वालिट होने की वजह से  जीरे की घरेलू के साथ-साथ निर्यात मांग भी अच्छी रही। तीसरे पूर्व अनुमान के मुताबिक, इस साल 3.74 लाख टन जीरे का  उत्पादन हो सकता है जो कि पिछले साल के मुकाबले 18 %  अधिक है। हालांकि, उत्पादन और क्वालिटी बहुत कुछ मौसम पर निर्भर करता है। 

-इस साल जीरे की निर्यात मांग में बढ़ोतरी का अनुमान है। इस साल अब तक निर्यात में इजाफा का ही रुझान है। दूसरी तरफ, दुनिया के दूसरे निर्यातक देश सीरिया, तुर्की और चीन में जीरे की उपलब्धता इस साल कम रहने वाली है। सीरिया में राजनीतिक कारणों से जीरे के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। ऐसे में भारत के लिए अच्छा मौका है। भारत में जीरे की नई पैदावार  फरवरी-मार्च तक आने लगेगी। वहीं सीरिया और तुर्की में जीरे की फसल अगस्त-सितंबर में आती है। यानी इस दौरान वैश्विक  बाजारों में भारतीय जीरे के लिए अच्छा मौका रहेगा। 

-आमतौर पर  साल की पहली तिमाही में जीरे का बाजार ठंडा ही रहता है। दरअसल, बड़े-बड़े कारोबारी बंपर फसल की उम्मीद में खरीदारी करने से बचते हैं। 

((बेस मेटल: 2017 में भी बेहतर प्रदर्शन जारी रहेगा ! 
'बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के शेयर बाजार जरूर जुआ है'
((शेयर बाजार: जब तक सीखेंगे नहीं, तबतक पैसे बनेंगे नहीं! 
((जानें वो आंकड़े-सूचना-सरकारी फैसले और खबर, जो शेयर मार्केट पर डालते हैं असर
((ये दिसंबर तिमाही को कुछ Q2, कुछ Q3 तो कुछ Q4 क्यों बताते हैं ?
((कैसे करें शेयर बाजार में एंट्री 
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Rajanish Kant मंगलवार, 17 जनवरी 2017
रबी फसल की 30 दिसंबर तक 583 लाख हेक्टेयर में बुआई
राज्यों से मिली प्राथमिक रिपोर्टों के मुताबिक, 30 दिसंबर, 2016 तक रबी फसलों का कुल रकबा 582.87 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जबकि पिछले वर्ष इसी समय तक यह रकबा 545.46 लाख हेक्टेयर था।

इस दौरान गेहूं की बुआई 292.39 लाख हेक्टेयर में, दलहन की 148.11 लाख हेक्टेयर में, मोटे अनाज की 52.21 लाख हेक्टेयर में जबकि तिलहन की 79.48 लाख हेक्टेयर में हुई है।

इस साल अब तक हुई बुआई का रकबा और पिछले साल इसी समय के दौरान हुई बुआई का ब्यौरा नीचे दिया गया है:-

((23 दिसंबर तक 555 लाख हेक्टेयर में रबी की बुआई

Rajanish Kant शनिवार, 31 दिसंबर 2016