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म्युचुअल फंड: डायरेक्ट प्लान या रेगुलर प्लान-फायदेमंद कौन?
म्युचुअल फंड रिटेल निवेशकों के लिए पैसा बनाने का बेहतर जरिया साबित हो रहा है। हालांकि, शेयर बाजार से जुड़े होने के कारण शेयर बाजार से जुड़े रिस्क म्युचुअल फंड के साथ भी जुड़े हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों से रिटेल निवेशकों का म्युचुअल फंड पर जबर्दस्त भरोसा बढ़ा है। 

शेयर बाजारों में तेजी के अलावा म्युचुअल फंड कंपनियां, सेबी, AMFI बगैरह भी जोरशोर से इसका प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। अगर आप भी म्युचुअल फंड में निवेश करने की सोच रहे हैं, तो आपको सारे म्युचुअल फंड स्कीमें योजनाओं में आपको दो विकल्प मिलेंगे- प्रत्यक्ष (डायरेक्ट-Direct)और नियमित (रेगुलर-Regular)। जाहिर है जब आपके सामने दो विकल्प होंगे, तो विकल्प चुनने का उलझन तो होगा ही। ये उलझन तब दूर होगी जब आप इन दोनों के नफा-नुकसान के बारे में सही से जानेंगे। 

म्युचुअल फंड के डायरेक्ट और रेगुलर प्लान को एक उदाहरण से समझाते हैं। हममें से बहुत सारे लोग किराए के मकान पर रहते हैं और उनमें से बहुतों को एक नियमित अंतराल पर घर बदलना पड़ता है। किराए का घर लेते समय आपके पास दो विकल्प होते हैं- एक, आप सीधे मकान मालिक से सौदा करते हैं और दूसरा, दलाल या एजेंट या ब्रोकर्स के जरिये सौदा करते हैं। अगर आप दलाल  के जरिये सौदा करते हैं तो आपको दलाली देनी होती है, लेकिन अगर आप सीधे मकानमालिक से सौदा करते हैं तो दलाली बच जाती है। 

उसी तरह, म्युचुअल फंड का डायरेक्ट और रेगुलर प्लान होते हैं। म्युचुअल फंड कारोबार में तीन पक्ष होते हैं, जैसे कि किराए के घर लेते समय होते हैं- एक, म्युचुअल फंड स्कीम्स लॉन्च करने वाली कंपनियां जिन्हें म्युचुअल फंड कंपनियां, फंड हाउस या ए एम सी (Asset Management Company)भी कहते हैं,दूसरा, इन स्कीम्स को बेचने वाले मध्यस्थ जैसे डिस्ट्रिब्यूटर्स (Distributors), ब्रोकर्स (Brokers) या बैंकर्स (Bankers) और निवेशक (Investor)। किराए का घर लेते समय भी तीन पक्ष होते हैं-घर का मकानमालिक, मकान दिलाने वाला दलाल या ब्रोकर या फिर एजेंट और तीसरा किराए का घर लेने वाला ग्राहक। 

> प्रत्यक्ष (डायरेक्ट-Direct)और नियमित (रेगुलर-Regular)प्लान में अंतर:  
प्रत्यक्ष योजना में, निवेशक AMC के साथ सीधे निवेश करता है जिसमें लेन-देन की प्रक्रिया में कोई वितरक शामिल नहीं होता। इसलिए, प्रत्यक्ष योजना में व्यय अनुपात ( Expense Ratio) कम रहता है क्योंकि कोई वितरण शुल्क इसमें निहित नहीं है। 

व्यय अनुपात (Expense Ratio) का आसान शब्दों में अर्थ हुआ कि आप जितना पैसा किसी स्कीम में निवेश करते हैं, उसमें अलग-अलग तरह के खर्चों का अनुपात कितना होता है। अलग-अलग खर्च में  फंड प्रबंधन खर्च, बिक्री और वितरण खर्च, अभिरक्षक और रजिस्ट्रार शुल्क/ फी आदि| ये समस्त व्यय, फंड के व्यय अनुपात द्वारा उठाये जाते हैं| ये समस्त व्यय,  नियामक SEBI द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर रहते हैं|

मान लिया, आपने 500 रुपए किसी म्युचुअल फंड स्कीम में निवेश किया, तो पूरे 500 रुपए उस स्कीम में निवेश नहीं होगा,उसमें कुछ पैसे  अलर-अलग खर्च के रूप में अलग कर लिया जाएगा। यह व्यय खर्च अलग-अलग कंपनियों और अलग-अलग स्कीम के साथ अलग-अलग हो सकता है। तो अगर आप प्रत्यक्ष योजना यानी डायरेक्ट प्लान में निवेश करते हैं तो आपका यह खर्च कुछ कम पड़ जाता है, क्योंकि आप सीधे म्युचुअल फंड कंपनी के साथ लेन-देन करते हैं जैसे कि किराए का घर लेते समय किसी दलाल के बजाय सीधे मकानमालिक से सौदा करते हैं। 

> नियमित योजना या रेगुलर प्लान में, निवेशक किसी मध्यस्थ जैसे वितरक, ब्रोकर या बैंकर की मदद से निवेश करता है और इन्हें AMC वितरण शुल्क देती है, जो योजना पर आवेशित कर दिया जाता है| यानी नियमित योजना का व्यय अनुपात प्रत्यक्ष योजना  के मुकाबले थोडा अधिक होता है  क्योंकि इसमें वितरक को दिया जाने वाला कमीशन भी शामिल रहता है। जैसे कि कोई घर अगर दलाल के जरिये आप किराए पर लेते हैं, तो आपको
दलाली देनी होती है। यानी आपका खर्च बढ़ जाता है। 

आपको बता दूं कि म्युचुअल फंड स्कीमों के प्रबंधन में लागत और व्यय एक जरूरी हिस्सा है, फंड प्रबंधन खर्च, बिक्री और वितरण खर्च, अभिरक्षक और रजिस्ट्रार शुल्क/ फी आदि| ये समस्त व्यय, फंड के व्यय अनुपात द्वारा उठाये जाते हैं| ये समस्त व्यय,  नियामक SEBI द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर रहते हैं|

अतः,अगर निवेशक प्रत्यक्ष योजना के अंतर्गत सीधे निवेश करता है, उसे व्यय में कटौती के चलते मामूली ऊंचे प्रतिफल मिल सकते हैं लेकिन उसके पास वितरण या उनसे सम्बंधित सेवाओं की सुविधायें भी नहीं रहती जो किसी मध्यस्थ के रहते उसे मिलती हैं|

> रिटर्न के मामले में प्रत्यक्ष (डायरेक्ट-Direct)और नियमित (रेगुलर-Regular)प्लान में कितना अंतर: 
 जानकारों के मुताबिक, दोनों प्लान में रिटर्न के मामले में 0.50%- 0.75% का अंतर आ सकता है। इसको ऐसे समझिये...अगर आपने किसी भी म्युचुअल फंड स्कीम के डायरेक्ट प्लान और रेगुलर प्लान में एक ही साथ समान रकम निवेश किया है, तो कुछ समय के बाद इन दोनों स्कीम पर जो आपको रिटर्न मिलेगा, उसमें  0.50%- 0.75% का अंतर होगा। डायरेक्ट प्लान पर ज्यादा रिटर्न मिलेगा और रेगुलर प्लान पर कम मिलेगा। 

दोनों प्लान्स के NAV अलग-अलग होते हैं। अगर कोई निवेशक कम व्यय अनुपात और बिना वितरक या ब्रोकर या बैंकर के ही म्युचुअल फंड में निवेश करना चाहता है, तो उसे रेगुलर प्लान के बदले डायरेक्ट प्लान चुनना चाहिए। ज्यादा रिटर्न चाहने वाले निवेशक को भी डायरेक्ट प्लान में पैसे लगाना चाहिए। लेकिन, ध्यान रखिये, कोई भी डायरेक्ट म्युचुअल फंड स्कीम चुनते वक्त जरूरी हार्ड वर्क करना सही रहेगा। आंख  बंद करके किसी भी स्कीम में पैसे लगाना जोखिमभरा हो सकता है। 

सितंबर 2012 में सेबी ने म्युचुअल फंड सेगमेंट में कई सुधार पेश किए थे। उसी में से एक था म्युचुअल फंड कंपनियों द्वारा  डायरेक्ट प्लान लॉन्च किया जाना। 




((म्युचुअल फंड: डायरेक्ट प्लान या रेगुलर प्लान-फायदेमंद कौन?
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Rajanish Kant मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017