अब बैंक कर्ज सस्ता करने में मनमानी नहीं कर सकेंगे !

अगर आपने लोन खासकर होम लोन, ले रखा होगा, तो एक चीज पर आपने गौर किया होगा। रिजर्व बैंक जिस हिसाब से ब्याज दर में कटौती करता है, बैंक उस हिसाब से कर्जदारों को फायदा नहीं देते हैं। मसलन, इस साल जनवरी से लेकर सितंबर तक रिजर्व बैंक ने प्रमुख दरों में 1.25% की कटौती कर चुका है लेकिन बैंक बेस रेट (जिस रेट से  नीचे बैंक लोन नहीं दे सकते हैं) में  0.4-0.7% की कटौती का ही फायदा दे पाए हैं।

रिजर्व बैंक लेंडिंग रेट्स का पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं देने पर बैंकों को अक्सर फटकार भी लगाते रहता है, लेकिन बैंक हमेशा अधिक कॉस्ट ऑफ फंडिंग का बहाना बनाकर खुद को बचा लेते हैं। अब रिजर्व बैंक इस बहाने को बदलने वाला है। लेंडिंग रेट्स में कटौती पर बैंकों की मनमानी पर रोक लगाने की कोशिश में है रिजर्व बैंक।

दरअसल बेस रेट की गणना करने के लिए कई फॉर्मूले हैं। मौजूदा फॉर्मूले के मुताबिक कॉस्ट ऑफ फंडिंग के आधार पर बैंक बेस रेट में कमी का फैसला करते हैं, लेकिन अब ये फॉर्मूला बदलने वाला है। रिजर्व बैंक जल्द ही बेस रेट्स का आकलन करने के नए तरीके की ड्राफ्ट गाइडलाइंस को अंतिम रूप देगा।

बेस रेट के नए फॉर्मूले के मायने: 
लोन की ब्याज दर बेस रेट के आधार पर तय की जाती है। यह वह रेट होता है, जिससे कम पर बैंकों को कर्ज देने की इजाजत नहीं है। इस महीने की शुरुआत में रिजर्व बैंक ने बैंकों के मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंडिंग से बेस रेट के आकलन को लिंक करने का प्रपोजल सर्कुलेट किया था।

अब तक बैंक बेस रेट्स तय करने के लिए अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल कर रहे थे। जानकारों के मुताबिक, एक बार RBI का प्रपोजल तय हो जाए, तो इनमें ज्यादा एकरूपता आएगी और रेट कट का फायदा कस्टमर्स को सही तरीके से मिल पाएगा।

रिजर्व बैंक ने बेस रेट तय करने के फॉर्मूले में इसे बैंकों के मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स से जोड़ने का तर्क रखा है। RBI का कहना है कि इससे पॉलिसी दरों में बदलाव का असर बैंकिंग सिस्टम पर सही ढंग से दिखेगा। यह अगले साल अप्रैल से लागू हो सकता है। अभी बैंक बेस रेट को ऐवरेज कॉस्ट ऑफ फंड्स, मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स या ब्लेंडेड कॉस्ट ऑफ फंड्स (लायबिलिटीज) के आधार पर कैलकुलेट करते हैं। रिजर्व बैंक इसमें पारदर्शिता बढ़ाना चाहता है।

कर्जदारों को फायदा: 

हालिया कटौती के साथ नए फॉर्मूले के लागू होने से होम लोन कस्टमर्स की बचत बढ़ेगी। बैंकों के बेस रेट में नए फॉर्मूले से कुछ कमी आ सकती है। हालांकि, इससे डिपॉजिट रेट्स और लेंडिंग रेट्स में भी बदलाव होंगे। यह सीधे अलग-अलग जमा पर बैंकों के चुकाए जाने वाले इंटरेस्ट से लिंक होगा। साथ ही बेस रेट के आकलन के तरीके में बनी हुई मौजूदा खामी बड़े हद तक दूर हो जाएगी। नए सिस्टम के तहत बैंकों बार-बार ब्याज दरों में
बदलाव करेंगे।

((रिजर्व बैंक के 10 दमदार फैसले और उसके संभावित असर
http://beyourmoneymanager.blogspot.in/2015/10/10.html

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