म्युचुअल फंड: क्यों है निवेश का सबसे बेहतर जरिया: भाग-2

म्युचुअल फंड में निवेश के दौरान एनएवी, एंट्री लोड, एक्जिट लोड, फोलियो नंबर, एएमसी, ऑफर डॉक्यूमेंट, यूनिट, ओपन एंडेड फंड, क्लोज एंडेड फंड जैसे शब्दों से आपका सामना होगा। तो किसी भी फंड में पैसा लगाने से पहले इन सबके बारे में जानना जरूरी है।


-AMC का काम: 
1-Asset Management Company(परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी)
2- निवेशकों के पैसों  का प्रबंधन
3-निवेश, डिविडेंड के बारे में फैसला
4- यूनिटों के मूल्य निर्धारण के लिए उचित लेखांकन
4- NAV की गणना


-NAV क्या है:
1-NAV (एनएवी): Net Asset Value (निवल परिसंपत्ति मूल्य)
2-किसी स्कीम की किसी भी समय हर यूनिट की कीमत
3- किसी स्कीम  की परिसंपत्ति के बाजार मूल्य से इसकी
देनदारियों को घटाकर प्राप्त होता है।

-यूनिट: कंपनियों के शेयर जैसा, आपके निवेश के बराबर mf कंपनियां
यूनिट जारी करती है














-ऑफर डॉक्यूमेंट(Offer Document):किसी भी स्कीम के बारे में पूरी जानकारी

-Close Ended Scheme(सीमित अवधि वाली स्कीम):  सीमित अवधि वाला फंड, जो
 केवल निश्चित अवधि के लिए एक बार अपनी यूनिटों को सार्वजनिक करता है। उस के बाद, इसकी
 यूनिटों को एक व्यक्तिगत शेयर की तरह एक्सचेंज पर ट्रेड किया जाता है।

- Open Ended Scheme (असीमित अवधि वाली स्कीम): फंड उतने अधिक शेयर
बेचता है, जितने निवेशक चाहते हैं यानी कोई निश्चित अवधि नहीं होती

- बिक्री मूल्य: वह मूल्य, जब निवेशक एक योजना में निवेश करते हैं। इसे ऑफर (प्रस्ताव) मूल्य भी कहा जाता है। इसमें एक बिक्री लोड भी शामिल हो सकता है।

-Repurchase Price (पुनर्खरीद मूल्य): वह मूल्य, जिस पर एक सीमित अवधि
योजनाएं अपने यूनिटों को पुनः खरीदती है। इसमें एक बैक-एंड लोड (अवधिपूर्व आहरण) शामिल
हो सकता है। इसे बोली मूल्य (बिड प्राइस) भी कहा जाता है।

-रिडेंपशन मूल्य: वह मूल्य, जिस पर असीमित अवधि वाली योजनाएं अपने
यूनिट पुनः खरीदती हैं और सीमित अवधि वाली योजनाएं परिपक्वता पर अपनी
इकाइयों को रिडीम करती (भुनाती) हैं। ये मूल्य, एनएवी से संबंधित होते हैं।





















-फोलियो नंबर (Folio Number):बैंक अकाउंट नंबर जैसा, mf स्कीम लेने पर फंड हाउस द्वारा दिया जाने वाला खास नंबर

- इक्विटी म्युचुअल फंड्स: निवेश मुख्यत: इिक्वटी और इिक्वटी संबंधित इंस्ट्रूमेंट्स (डाइवर्सिफाइड) में


- सेक्टर फंड्स: तकनीकी रूप से इन्हें थीमैटिक फंड्स कहते हैं जिसमें निवेश किसी विशेष सेक्टर में होता है

-इंडेक्स फंड्स: बीएसई लिस्टेड स्टॉक्स में निवेश, कोट का प्रबंधन परोक्ष रूप से
- बैलेंस्ड फंड:  शेयर, बाण्ड और अन्य प्रतिभूतियों, यानि इक्विटी के साथ निश्चित आय प्रतिभूतियों में संतुलित निवेश

-फंड ऑफ फंड्स: सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन वाले म्युचुअल फंड्स में निवेश

-टैक्स सेवर म्युचुअल फंड्स: धारा 80 सी का लाभ, जहां निवेशित
राशि तीन वर्षों के लिए बंद कर दी जाती है

-डेट म्युचुअल फंड्स: सरकार संबंधित इंस्ट्र्रूमेंट्स में निवेश


-मंथली इनकम प्लान (MIP): जहां मासिक लाभांश का भुगतान निवेशक को वापस किया जाता है।

-लिक्विड फंड्स: हाई लिक्विडिटी वाले मनी मार्केट फंड्स में निवेश,  ट्रेजरी बिल, कमर्शियल पेपर, कॉल मनी मार्केट में निवेश

-फ्लोटिंग रेट शॉर्ट टर्म फंड्स: डेब्ट सिक्यॉरिटी़ज, मनी मार्केट इंस्ट्र्रूमेंट्स और फ्लोटिंग रेट इंस्ट्र्रूमेंट्स में निवेश जिनकी मैच्यॉरिटी प्रोफाइल 3 महीने से 2 वर्ष तक होती है।


-गिल्ट फंड्स: सरकार संबंधी सिक्यॉरिटी़ज में निवेश

-फिक्स्ड मैच्यौरिटी प्लान्स (FMP): मैच्यॉरिटी की अवधि तक फिक्स्ड रिटर्न्स

-गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स: मुख्यत: गोल्ड कमॉडिटी स्टॉक्स में निवेश।

-NFO (न्यू फंड ऑफर): फंड हाउस द्वारा रु. 10 के फेस वैल्यू पर लांच किये जाने वाले नये फंड्स।

-लोड (Load): फंड हाउस द्वारा mf यूनिट खरीदते या बेचते समय निवेशकों से
वसूल की जाने फीस

-Entry या Front-end Load:फंड हाउस द्वारा यूनिट खरीदते समय निवेशकों से  ली जाने वाली फीस

-Exit या Back-end Load:फंड हाउस द्वारा यूनिट बेचते समय निवेशकों से ली जाने वाली फीस

उम्मीद है निवेश के एक बेहतर जरिया म्युचुअल फंड के बारे में आपको पर्याप्त जानकारी मिल गई होगी।

म्युचुअल फंड: क्यों है निवेश का सबसे बेहतर जरिया: भाग-1
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